छात्रों ने साड़ी पहनकर दिया लैंगिक समानता का संदेश

पुणे। सँवाददाता – लैंगिक समानता का संदेश देने के लिए पुणे के फर्ग्युसन कॉलेज में वार्षिक परंपरागत परिधान दिवस पर अनोखा नजारा देखने मिला है। इस मौके पर कॉलेज के तीन छात्रों ने कॉलेज में साड़ियां पहनकर सबको चौंका दिया। जेंडर इक्वलिटी का संदेश देने के लिए इन तीन छात्रों आकाश, सुमित और रुशिकेश ने साड़ी पहनी थी। वार्षिक ‘टाई और साड़ी डे’ में कुछ बदलाव लाने की मंशा से थर्ड ईयर के छात्रों ने साड़ी पहनी थी।
2 जनवरी को फर्ग्युसन कॉलेज में ‘टाई एंड साड़ी डे’ मनाया जा रहा था। इस दौरान लड़कों को फॉर्मल सूट पैंट और टाई लगाकर आना था तो लड़कियों को साड़ी पहनकर, लेकिन कॉलेज के तीन लड़कों और एक लड़की ने हमारी सोसाइटी के इस जेंडर नॉर्म्स को तोड़ दिया। इस मौके पर सुमित होनवाडजकर, आकाश पवार और रुशिकेश सनप ने साड़ी पहनी, जबकि श्रद्धा देशपांडे ने फॉर्मल सूट पहना था। तीनों लड़कों ने साड़ी के साथ बिंदी, चूड़ी और नेकलेस भी पहना था, जबकि श्रद्धा ने अपने सूट पैंट पर अपने पापा की टाई भी लगा रखी थी।
फर्ग्युसन कॉलेज के प्रिंसिपल रविंद्र सिंह जी परदेशी ने कहा की जेंडर इक्वलिटी के बारे में उन्होंने जो संदेश चित्रित किया है, उसे दृढ़ता से बाहर जाना चाहिए। मैंने 1984 में बतौर शिक्षक के रूप में इस कॉलेज को जॉइन किया था, लेकिन आज पहली बार ऐसा देख रहा हूं कि कोई लड़का साड़ी और लड़कियां सूट पैंट पहन कर आई हैं। कॉलेज के ग्राउंड में बैठकर सभी स्टूडेंट्स ने जेंडर इक्वलिटी पर डिस्कशन की, जिसमें आकाश पवार ने बताया- मुझे नहीं पता था कि साड़ी पहनना इतना मुश्किल काम हैं। इसके साथ आपको ब्लाउज, पेटीकोट और बहुत सारे सेफ्टी पिन जैसी कई अन्य चीजों की भी जरूरत पड़ती है।
इतिहास के छात्र होनवाडाजकर के लिए एक बैंगनी रंग की साड़ी, सांवले रंग के आकाश पवार के लिए नारंगी और रुशिकेश सनप के लिए एक क्रीम कलर की रेशम की साड़ी पहनने के लिए दिया गया थाश्रद्धा देशपांडे ने बताया कि लड़के अक्सर कहते हैं कि लड़कियां तैयार होने में बहुत टाइम लेती हैं। इन तीनों को तैयार करने में मुझे 90 मिनट लग गए और अब सभी लड़के तो नहीं लेकिन कम से कम ये तीन तो समझ पाएंगे की लड़कियां इतना टाइम क्यों लेती हैं।
रुशिकेश सनप ने बताया कि 2 जनवरी की सुबह कॉलेज में एंट्री करने से पहले वो तीनो काफी नर्वस थे। जैसे ही उन्होंने कॉलेज के गेट में एंट्री ली सभी लोग उन्हें रोबोट जैसे देखने लगे। बहुत से लोगों ने तो उन्हें टोंका कि अरे यार यह क्या करके आए हो, लड़के हो लड़के जैसे रहो। लेकिन लड़कियों ने उनसे काफी बात की, जो उनके डिपार्टमेंट की भी नहीं थी। आकाश पवार ने कहा कि फर्ग्युसन कॉलेज से थोड़ी दूरी पर बाल गंधर्व रंग मंदिर है, जो महान रंगमंच कलाकार को समर्पित है जिन्होंने मंच पर महिलाओं की भूमिकाएं निभाई थीं। उन्होंने कहा कि जब बाल गंधर्व साड़ी में प्रदर्शन करते थे, तो दर्शक तालियां बजाते थे, लेकिन जब एक छात्र साड़ी पहनता है, तो हम उसकी आलोचना या मजाक क्यों करते हैं? मैं समझता हूं कि साड़ी हमारी सांस्कृतिक विरासत का एक अविभाज्य हिस्सा है लेकिन हमें ऐसा क्यों लगता है कि महिलाओं को हर समय साड़ी पहननी चाहिए?