धर्म के मार्ग पर चलकर राक्षस बनने से बचा जा सकता है

पिंपरी। सँवाददाता – स्वानंद सुखनिवासी सद्गुरु जोग महाराज पुण्यतिथि शताब्दी महोत्सव के पांचवें दिन पर आयोजित कार्यक्रम में पुणे के आलंदी पहुंचे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा कि, इंसान का स्वभाव ऐसा है कि वक्त पड़ने पर वह राक्षस भी बन सकता है। मगर धर्म के मार्ग पर चलने पर वही इंसान राक्षस नहीं बल्कि ईश्वर बनने की राह पर आगे बढ़ता है।
उन्होंने आगे कहा, एकता को विविधता में विविधता कहा जाता है लेकिन हमारे पास एकता में विविधता है। एकता के कई रूप हैं उनका स्वागत करें, आपस में झगड़ा न करें। सनातन धर्म का सूत्र आत्मा के सभी रूपों में काम करना है। नींव एक ही है, इमारत अलग है। जैसे घर की नींव नहीं बदलती, वैसे ही देश है। हमारे देश में आध्यात्मिकता के रूप में जो बात की गई है, हमने परोक्ष में देखा है। कबीर महाराज ने लिखा है, कागज लेखी मैं कहता हूं, आंखन देखी। यह परंपरा आज भी बनी हुई है।
हमारे देश का व्यक्ति अनपढ़, अनाड़ी हो सकता है। लेकिन हम सभी के आचरण में धर्म है। हमारे पास अनाड़ी कहे जाने वाला व्यक्ति भी दुनिया के सबसे बुद्धिमान व्यक्ति का गुरु बन सकता है। हमारे यहां एक रिक्शाचालक भी आपको बताता है, ‘जाने दो साहब पैसे तो मुर्गी भी नहीं खाती।’ वे भले ही पैसों के लिए कड़ी मेहनत करते हैं, लेकिन पैसों को तुच्छ भी मानने वाले लोग हमारे यहां ही मिलेंगे। हमारे यहां मानवता को महत्व देने की परंपरा है। धर्म, आध्यात्मिकता हमारे यहां जमीनी स्तर पर पहुंच गई है। आदमी को सब कुछ मिल जाता है, लेकिन क्या वह सुखी हो पाता है? क्या उसे शांति मिल पाती है? नहीं। वैश्विक आंकड़ों के अनुसार, सुविधा जितनी अधिक होगी, आत्महत्या, उतनी ही अधिक हो रही है।