‘…  भाजपा उसी परमबीर सिंह को अपने कंधों पर उठाकर बाराती की तरह नाच रही है’

मुंबई पुलिस आयुक्त पद से हटाए गए पुलिस अधिकारी परमबीर सिंह के एक पत्र ने महाराष्ट्र के राजनीतिक गलियारों में खलबली मचा दी। सीधे गृह मंत्री पर आरोप लगाए जाने के कारण विपक्षी भाजपा सरकार को शर्मिंदा करने की कोशिश कर रही है। सिंह के पत्र पर भाजपा के गृह मंत्री अनिल देशमुख के इस्तीफे के लिए आक्रामक होने के बाद परमबीर सिंह के ‘लेटर बम’ का जवाब शिवसेना ने भाजपा को दिया है। शिवसेना ने मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि भले ही महाराष्ट्र में चार मुर्गी और और दो कौवे बिजली के झटके से मर गए, तो भी  केंद्र सीबीआई या एनआईए को भेज देगा।

जब सचिन वाझे मामला गूंज रहा था, तब राज्य सरकार ने मुंबई पुलिस आयुक्त के पद से परमबीर सिंह का तबादला किया। पद से हटाए जाने के बाद  सिंग ने सीधे गृह मंत्री अनिल देशमुख पर चौंकाने वाले आरोप लगाए। भाजपा ने इस पत्र पर आक्रामक रुख अपनाया है और शिवसेना ने भाजपा की मांगो पर सामना के संपादकीय के माध्यम से अच्छी खबर ली है। मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह बहुत ही अयोग्य अधिकारी हैं। भाजपा कहती थी कि उन पर भरोसा नहीं किया जा सकता था, लेकिन आज भाजपा उसी परमबीर सिंह के सिर पर बैठकर नाच रही है। पुलिस आयुक्त के पद छोड़ने के बाद परमबीर साहब ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को एक पत्र लिखा। इसमें वे कहते हैं कि गृह मंत्री देशमुख ने सचिन वाझे को हर महीने 100 करोड़ रुपये का “लक्ष्य” दिया था। परमबीर सिंह ने अपने पत्र में कई अन्य बातें लिखी हैं। परमबीर सिंह ने यह भी कहा कि मुंबई में सांसद डेलकर के आत्महत्या करने के मामले में, गृह मंत्री उन पर आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज करने का दबाव बना रहे थे। मीडिया के साथ साथ भाजपा का इस पर संघर्ष शुरू हैं।

राज्य सरकार ने परमबीर सिंह को पुलिस आयुक्त के पद से हटा दिया है। सचिन वाझे एंटीलिया विस्फोटक मामले में एनआईए की हिरासत में हैं। यह मानते हुए कि इन सभी मामलों को ठीक से संभाला नहीं गया और पुलिस विभाग की बदनामी हो रही थी इसलिए सरकार ने पुलिस आयुक्त के पद से हटाया। भाजपा की ही मांग थी कि सचिन वाझे को हटाने से क्या फायदा? पुलिस आयुक्त को हटाओ। अब उसी परमबीर सिंह को अपने कंधों पर उठाकर भाजपा शादी में बाराती की तरह नाच रही है। यह एक राजनीतिक विरोधाभास है। सरकार ने परमबीर सिंह के खिलाफ कार्रवाई की है। तो कोई उनकी भावनाओं को समझ सकता है, लेकिन क्या इस तरह के सनसनीखेज पत्र भेजने के लिए सरकारी सेवा में किसी वरिष्ठ पद पर बैठे  व्यक्ति के लिए समझदारी की बात है क्या? गृह मंत्री पर लगाते हुए मुख्यमंत्री को पत्र लिखना और उसे मीडिया तक पहुंचाना अनुशासन में नहीं बैठता है। परमबीर सिंह निश्चित रूप से एक अच्छे अधिकारी हैं। उन्होंने कई जिम्मेदारियों को पूरी तरह से निभाया। सुशांत राजपूत मामले की पुलिस ने उनके नेतृत्व में जांच की। इसलिए सीबीआई को अंत तक हाथ मलते हुए बैठना पड़ा। उन्होंने कंगना के मामले को अच्छी तरह से संभाला,  लेकिन एंटीलिया मामले में उन पर विपक्ष ने उन पर आरोप लगाए ये भी सच है लेकिन एक पुलिस अधिकारी के लिए इस तरह का पत्र लिखना और सरकार को आरोपी के पिंजरे में खड़ा करना उचित नहीं है।

भाजपा इन सभी मामलों में सरकार को बदनाम करने के लिए कर रही है परमबीर का इस्तेमाल

परमबीर सिंह के अनुसार  गृह मंत्री ने सचिन वाझे को हर महीने 100 करोड़ रुपये वसूली करने के लिए कहा। गृह मंत्री ने कहा था कि मुंबई में 1750 बार और पब से पैसा जुटाए, लेकिन पिछले डेढ़ साल से कोरोना की वजह से मुंबई और ठाणे में पब और बार बंद है। तो सवाल यह है कि यह सारा पैसा कहां से आएगा? परमबीर सिंह को थोड़ा सन्यम रखना था। सरकार को मुसीबत में डालने के लिए परमबीर सिंह का इस्तेमाल कौन कर रहा है? यह संदेह है। जिस सचिन वाझे की वजह से ये सब हो रहा है उस सचिन वाझे को इतनी ताकत किसने दी? सचिन वाझे ने बहुत सारे कारनामे किए हैं। अगर इसे समय पर रोका गया होता तो मुंबई पुलिस आयुक्त पद का शान बना रहता। हालाँकि, पूर्व आयुक्त ने कुछ मामलों में अच्छा काम किया लेकिन वे वाझे मामले में बदनाम हो गए। वाझे पर मनसुख हिरेन की हत्या का आरोप है। कहा जाता है कि एनआईए इन सभी मामलों में पूछताछ के लिए परमबीर सिंह को बुला सकती है।

गृह मंत्री अनिल देशमुख ने अब यह स्पष्ट कर दिया है कि सचिन वाझे की अंबानी के घर के बाहर विस्फोटक मामले और मनसुख हिरेन हत्याकांड में संलिप्तता स्पष्ट हो रही है। परमबीर सिंह द्वारा खुद को बचाने के लिए आरोप लगाए जा रहे हैं, क्योंकि इस मामले की जांच परमबीर सिंह तक पहुंचने की संभावना है। अगर यह सच है  तो भाजपा इन सभी मामलों में सरकार को बदनाम करने के लिए परमबीर का इस्तेमाल कर रही है। उनकी नीति न केवल सरकार को बदनाम करना है, बल्कि सरकार को मुसीबत में डालना भी है। देवेंद्र फडणवीस दिल्ली जाते हैं और मोदी-शाह से मिलते हैं और दो दिन में परमबीर सिंह ऐसा पत्र लिखते हैं। उस पत्र के आधार पर विपक्ष जो हंगामा कर रहा है, यह एक साजिश का हिस्सा लगता है।

भले ही महाराष्ट्र में बिजली के झटके से चार मुर्गी और दो कौवे मर जाएं, तो भी केंद्र सीबीआई और एनआईए को ही भेजेगा

विपक्ष ने महाराष्ट्र में केंद्रीय जांच एजेंसी का इस्तेमाल किया है। यह महाराष्ट्र जैसे राज्य के लिए सही नहीं है। एक तरफ राज्यपाल राजभवन में बैठकर अलग ही भ्रम की स्थितिका निर्माण कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ केंद्र सरकार केंद्रीय जांच एजेंसी के माध्यम से दबाव डालने का खेल खेल रही है। ऐसा लगता है कि महाराष्ट्र के किसी हिस्से में चार मुर्गियाँ और दो कौवे बिजली के झटके से मर जाते हैं, तो भी केंद्र सरकार सीबीआई या एनआईए को महाराष्ट्र भेज सकती है। महाराष्ट्र में कानून व्यवस्था ठीक न होने का आरोप लगाकर यहाँ राष्ट्रपति शासन लगाना ही विपक्ष का मूल उद्देश्य है, ऐसा लग रहा है। इसके लिए नए प्यादे बनाए जा रहे हैं। अब यह स्पष्ट है कि परमबीर सिंह का इस तरह से इस्तेमाल किया जा रहा है।

बेशक पूर्व पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह द्वारा लगाए गए आरोपों ने गृह विभाग की छवि को धूमिल किया है। यह सरकार की प्रतिष्ठा का विषय बन गया है और विपक्ष को यह अधिकार मिल गया है। लोग मानते हैं कि पुलिस विभाग में भ्रष्टाचार है, लेकिन अधिक भ्रष्टाचार पुलिस की तुलना में आयकर,  ईडी,  सीबीआई जैसे विभागों में है। हालाँकि, ये विभाग जनता से संबंधित नहीं हैं। लेकिन पुलिस का तो जनता से रोज का रिश्ता है। इसलिए  पुलिस की छवि ही अक्सर सरकार की छवि होती है। उसी छवि पर विपक्ष ने कीचड़ उछालने का काम किया है। अगर विपक्ष भूल गया है कि इससेम हाराष्ट्र की छवि धूमिल हुई है, तो यह दुर्भाग्यपूर्ण है। महाराष्ट्र में विपक्षी दल कल तक परमबीर सिंह के निलंबन की मांग कर रहे थे। आज  परमबीर विपक्ष का ‘डार्लिंग’  बन गया है और सरकार को परमबीर सिंह के कंधे पर बंदूक रखकर निशाना साध रहा है। महाविकास आघाड़ी की सरकार के पास अभी भी अच्छा बहुमत है। यदि आप बहुसंख्यक को धमकाते हैं,  तो आग लग जाएगी। यह एक चेतावनी नहीं बल्कि एक सच्चाई है। विपक्ष को यह नहीं भूलना चाहिए कि सरकार किसी अधिकारी की वजह से नहीं आतीं और न ही गिरती हैं!