बिहार चुनाव…दशकों के संघर्ष के बाद भाकपा माले को आखिरकार मिली ‘जमीन’

पटना. ऑनलाइन टीम : बिहार विधानसभा चुनाव में राजद और राजग को चाहे जो नफा-नुकसान हुआ हो, लेकिन वामदलों को दशकों बाद संजीवनी मिली है। जमीन की बात करने वाली इस पार्टी के पैर जड़ से उखड़ते जा रहे थे, लेकिन इस चुनाव ने उन्हें ‘जमीन’ मुहैय्या करा दी है। देखा जाए तो एक तरह से इस चुनाव में सबसे ज्यादा फायदे में भाकपा माले रही। इस बार गठबंधन में चुनाव लड़ने के लिए वामदलों को कुल 19 सीटें मिली थीं। इनमें से 16 सीटों पर उनकी जीत हुई। अकेले भाकपा माले ने ही 12 जीतीं और भाकपा एवं माकपा दो-दो सीटों पर विजयी हुईं। माकपा के चार प्रत्याशी मैदान में थे, जिनमें से दो जीते, जबकि भाकपा ने छह प्रत्याशी खड़े किए थे उसे दो पर जीत मिली।

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी), जिसे संक्षेप में भाकपा माले या सीपीआई एमएल कहते हैं। इसका चुनाव चिन्ह आयताकार लाल झंडे पर सफेद हंसिया और हथौड़ा अंकित है। वर्ष 1989 में इस पार्टी ने पहली बार बिहार में एक सीट जीती थी। इसके बाद 1990 में इसके सात विधायक चुने गए। आंतरिक संघर्ष के बावजूद पार्टी ने   बिहार के भोजपुर में नक्सलबाड़ी की मशाल को जलाए रखा। वर्ष 1989 में पहली बार बिहार के आरा लोकसभा क्षेत्र से रामेश्वर प्रसाद निर्वाचित हुए और 1990 में बिहार विधानसभा चुनाव में पार्टी के सात विधायक विजयी हुए। इसके बाद से बिहार विधानसभा चुनाव में पार्टी अपने उम्मीदवार उतारती आ रही है। बिहार के अलावा झारखंड, पंजाब, उत्तर प्रदेश जैसे कई अन्य राज्यों में पार्टी की उपस्थिति है।

इस चुनाव में उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी भी आए दिन सभी मंचों से राजद पर चीन समर्थकों (वामपंथी दल) से हाथ मिलाने का आरोप लगाते रहे। दूसरी तरफ,  महागठबंधन में शामिल वामपंथी दलों से बार बार घूमा फिराकर बस यही पूछा जा रहा है वे क्यों इसमें शामिल हुए हैं (गोया कोई भारी अपराध हो गया हो) और यदि सरकार बन गयी तो उनकी क्या भूमिका रहेगी!

जानकारों कि नज़र में इस बार बिहार चुनाव में वामपंथी दलों का महागठबंधन में शामिल होना बहुतों को रास नहीं आया। सत्ता पोषित मीडिया में भी काफी बौखलाहट रही। वामपंथी दलों के खिलाफ भाजपा व उसके आला नेताओं द्वारा अनाप शनाप बोलने का जवाब देते हुए वाम दलों ने भी पलटवार करते हुए कहा है कि – आम लोगों में सरकार के प्रति काफी आक्रोश और वोटरों में नाराजगी है, जिससे ध्यान हटाने के लिए ही लाल झंडे को निशाना बनाया जा रहा है।

अपने विभिन्न चुनावी अभियानों में भाकपा माले के राष्ट्रीय महासचिव ने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष द्वारा वामपंथ को विध्वंसकारी कहे जाने पर अपनी टिप्पणी में कहा है कि एनडीए के लोग माले व सभी वामपंथी दलों पर अनाप शनाप बयानबाजी करके असली सवालों से भागना चाहते हैं। इन्होंने चुनाव के शुरुआत में ही यह बयान देकर अपनी हताशा जाहिर कर दी है। इनके नेताओं के बयानों में यह भी साफ दीख रहा है कि उन्होंने अपनी ज़मीन खो दी है। बहरहाल, इसमें कोई दो राय नहीं कि इस चुनाव ने इस दल को भारी दलदल से बाहर निकाल लिया है।