Babasaheb Purandare | शिवशाहीर बाबासाहेब पुरंदरे का राजकीय सम्मान से अंतिम संस्कार

पुणे (Pune News) : शिवशाहीर बाबासाहेब पुरंदरे (Babasaheb Purandare) का आज सुबह निधन हो गया।  पुरंदरे का सरकारी रीतिरिवाज से पुणे (Pune) के वैकुंठ श्मशान भूमि में अंतिम संस्कार किया गया है।  इस मौके पर बाबासाहेब (Babasaheb Purandare) को अंतिम विदाई देने के लिए लोगों की काफी भीड़ जमा हुई थी। सभी क्षेत्रों के गणमान्य दवारा बाबासाहेब पुरंदरे को श्रद्धांजलि दी गई। इस मौके पर कई लोगों ने कहा कि महाराष्ट्र (Maharashtra) ने शिवआधारक को गंवा  दिया है।
पिछले सप्ताह भर से बाबासाहेब पुरंदरे की तबीयत ख़राब होने की वजह से उन्हें हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था।  आज सुबह (सोमवार ) बाबासाहेब पुरंदरे ने आखिरी सांस ली।  उनके निधन (Death) पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi), मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे (CM Uddhav Thackeray), राज ठाकरे (Raj Thackeray), सचिन तेंदुलकर (Sachin Tendulkar), देवेंद्र फडणवीस (Devendra Fadnavis) के साथ विभिन्न क्षेत्रों के दिगज्जों ने शोक व्यक्त किया है।


जाणता राजा महानाटक का निर्माण किया

बाबासाहेब पुरंदरे (Babasaheb Purandare) ने मुख्य रूप से ऐतिहासिक विषयों पर वर्णात्मक लेखन, ललित कादंबरी लेखन के साथ नाट्य लेखन व जाणता राजा नाटक का निर्देशन किया था।  उन्हें 2015 में पद्मविभूषण पुरस्कार (Padma Vibhushan Award) मिला था।  बाबासाहेब पुरंदरे के जाणता राजा महानाटक पिछले 27 वर्षों में 1250 से अधिक बार मंचन किया गया है। यह नाटक हिंदी अंग्रेजी के साथ 5 अन्य भाषाओं में मंचित किया गया।  जाणता राजा में 150 कलाकार काम करते है साथ में घोड़े भी होते है।  इसका मंचन करने के लिए बड़ा मैदान और वहां मूविंग रंगमंच के लिए 10 दिन और इसे हटाने में 5 दिन का वक़्त लगता है।
बाबासाहेब इतिहास को लेकर पागल थे और इसकी वजह से उनकी राष्ट्रभक्ति हमेशा बनी रही।  उनकी प्रेरणा के बड़ी संख्या में शिव भक्त और  गढ़ प्रेमी तैयार हुए।  ऐतिहासिक वस्तु और डॉक्युमेंट्स को इतिहास के गवाह के तौर पर देखने का उन्होंने दृष्टिकोण दिया।  उनसे स्टडी और रिसर्च की प्रेरणा मिली।  छत्रपति शिवाजी महाराज (Chhatrapati Shivaji Maharaj) बचपन से उनकी भक्ति का विषय थे।

16 वर्ष की उम्र से पिता के साथ किला, वाड़ा, महल, मंदिर देखने की उन्होंने शुरुआत की थी।  इतिहास की तलाश के लिए वह कभी साइकल, कभी पैदल, कभी ट्रेन, कभी बैलगाड़ी  और कभी समुंद्री तो कभी हवाई मार्ग तो कभी घोड़े से सफर किया।

 

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