औरंगाबाद : आपने थ्री इडियट्स फिल्म तो देखी ही होगी और इसमे आमिर खान ने रैंचो की जो भूमिका निभाई थी वो तो सबको याद ही होगा। फिल्म में किस तरह से रैंचो ने वैक्यूम की मदद से हीरोइन की बहन की डिलीवरी की थी। इस तरह के घटना हम रील लाइफ में देखते हैं लेकिन क्या कभी सोचा है कि रियल लाइफ में भी इस तरह की घटना देखने को मिल सकती है। हाँ… ऐसा कारनामा रियल लाइफ में भी देखने को मिला है। औरंगाबाद में एक दो नहीं बल्कि 325 डिलीवरी वैक्यूम की मदद से की गयी है। घाटी अस्पताल के डॉक्टर ने इस तरह की डिलीवरी की है।
मराठवाडा के गरीब लोगो का आधार घाटी अस्पताल मे वर्ष 2020 में 325 महिलाओ की सफलतापूर्वक डिलीवरी इस तरीके से की है। घाटी में हर वर्ष 14 हज़ार से 18 हज़ार डिलीवरी होती है। मतलब महीने में 18 से 44 तक डिलीवरी हो जाती है। इस प्रकार कई डिलीवरी को चिकित्सा क्षेत्र में इंस्ट्रुमेंटल डिलीवरी कहते हैं।
क्यो की जाती है वैक्यूम डिलीवरी
दर्द शुरू होने के बाद गर्भाशय का मूह पूरा खुल जाता है। बच्चे का सिर नीचे आ जाता है, लेकिन फिर सिर बाहर नहीं आ पाता है। ऐसे में ऑपरेशन करना मुश्किल होता है और नॉर्मल डिलीवरी का ही इंतजार करना पड़ता है। उस वक्त वैक्यूम और चिमटा का इस्तेमाल कर डिलीवरी की जाती है, लेकिन अगर गर्भाशय का मुख नहीं खुला तो इस तरह की डिलीवरी नहीं की जा सकती है।
एनआईसीयू में सिर्फ 2 प्रतिशत बच्चे
डॉक्टरों ने कहा कि इस तरह की डिलीवरी होने के बाद सिर्फ 2 प्रतिशत बच्चे को ही एनआईसीयू मे एडमिट करना पड़ता है। वैक्यूम डिलीवरी सिर्फ विशेषज्ञ डॉक्टर ही कर सकते हैं। इसके लिए ट्रेनिंग ली जाती है। इसलिए बच्चा और उसकी माँ सुरक्षित रहती है।
वैक्यूम डिलीवरी कई वर्षो से की जा रही है। गर्भाशय के मुह पूरी तरह से खुल जाता है, उसके बाद बच्चा अगर वही रुक जाता है तो इसका सहारा लिया जाता है। साल भर में 325 डिलीवरी हुई है। बहुत ही सावधानी से यह डिलीवरी की जाती है। थोड़ी सी लापरवाही बच्चे और उसकी माँ के लिए खतरनाक साबित हो सकते हैं। इसलिए सिर्फ विशेषज्ञ डॉक्टर ही यह डिलीवरी कर सकते हैं।
– डॉ श्रीनिवास गडप्पा, विभाग प्रमुख, स्त्री रोग व प्रसुतिविज्ञान विभाग, घाटी