‘अर्नब, कंगना को अदालत में त्वरित न्याय, फिर मराठी सीमा बंधुओं को क्यों नहीं?’

मुंबई : ऑनलाइन टीम – महाराष्ट्र-कर्नाटक सीमा विवाद ने दो राज्य सरकारों के बीच आरोपों की बौछार कर दी है। कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री लक्ष्मण सवदी ने यहाँ तक कह दिया कि बेलगांव छोड़ो, मुंबई भी कर्नाटक का हिस्सा है। इस पर अब शिवसेना नेता संजय राऊत ने जवाब दिया है। शिवसेनेा मुखपत्र ‘सामना’ में आज सवदी के बयान पर एक लेख लिखी गयी है साथ ही सीमा विवाद पर कुछ सवाल उठाए गए हैं।

सामना में लिखा गया है कि ‘सीमा विवाद सुप्रीम कोर्ट में है। अर्नब और कंगना जैसे लोगों को सुप्रीम कोर्ट में त्वरित न्याय मिलता है। लेकिन, सुप्रीम कोर्ट को करोड़ों मराठी सीमा बंधुओं का दर्द नहीं दिख रही है। लेख में आगे लिखा गया कि दोनों राज्यों के बीच का विवाद अभी अदालत में है। इसमें केंद्र को एक अभिभावक और निष्पक्ष भूमिका निभाने की आवश्यकता है।

लेख में लिखा गया कि मामला अभी मूल रूप से अदालत में है। ऐसे में कर्णाटक सरकार ने बेलगाम सहित सीमावर्ती क्षेत्रों से मराठी भाषा और संस्कृति के निशान को उखाड़ने की कोशिश की है। यह राजनीतिक और सांस्कृतिक आतंकवाद है। इसे समाप्त करना होगा।

मीडिया रिपोर्ट के  मुताबिक,1947 में आजादी के बाद बेलगाम बॉम्बे प्रदेश के तहत आया। 1881 की जनगणना के मुताबिक बेलगाम में 64.39 फीसदी लोग कन्नड़-भाषी थे और 26.04 फीसदी लोग मराठी। लेकिन, 1940 के दशक में बेलगाम पर मराठी-भाषी राजनीतिज्ञ प्रभावी हो गए और उन्होंने गुजारिश की कि उनके जिले को प्रस्तावित संयुक्त महाराष्ट्र प्रदेश में शामिल किया जाए। लेकिन, राज्य पुनर्गठन कानून, 1956 के तहत उनकी मांग खारिज कर दी गई और बेलगाम के अलावा बॉम्बे प्रांत के 10 तालुकाओं को मैसूर राज्य का हिस्सा माना गया, जिसका नाम 1997 में बदलकर कर्नाटक हो गया। इस कानून के तहत राज्यों का बंटवारा भाषा और प्रशासनिक आधार पर किया गया है।

जब राज्य पुनर्गठन कानून, 1956 के तहत मराठी नेताओं की मांग खारिज हो गई तो तत्कालीन बॉम्बे सरकार ने केंद्र के सामने इसको लेकर अपना विरोध जताना शुरू कर दिया। 10 साल बाद 1966 में इस विवाद के निपटारे के लिए जस्टिस मेहर चंद महाजन की अगुवाई वाला महाजन आयोग गठित किया गया। इस आयोग ने एक साल बाद यानि 1967 में अपनी रिपोर्ट जारी की, जिसमें विवादित क्षेत्र में आने वाले 264 गांव महाराष्ट्र को और 247 गांव कर्नाटक को दिए गए। हालांकि, इस आयोग ने भी बेलगाम पर कर्नाटक के दावे को हरी झंडी दे दी। महाराष्ट्र ने इस रिपोर्ट को मानने से इनकार कर दिया, जबकि कर्नाटक ने यथास्थिति बनाए रखने की मांग की।