मां करीमा बेगम के निधन पर भावुक हुए एआर रहमान, कहा- वह मुझसे कहीं अधिक ऊंचाई पर थीं

नई दिल्ली. ऑनलाइन टीम : म्यूजिक कम्पोजर ए.आर. रहमान की मां करीमा बेगम का निधन हो गया है। बहुत कम लोग जानते हैं कि ए.आर रहमान का बचपन का नाम दिलीप था, लेकिन उन्होंने अपना धर्म बदल लिया था और ए.आर. रहमान नाम रख लिया था। ए.आर रहमान की मां ने भी धर्म परिवर्तन करते हुए इस्लाम अपना लिया था। पहले उनका नाम कस्तूरी शेखर था, लेकिन बाद में वह करीमा बेगम हो गई थीं। ए.आर रहमान के पिता का निधन तभी हो गया था, जब वह सिर्फ 9 साल के ही थे।

रहमान ने खुद अपनी मां की तस्वीर सोशल मीडिया पर शेयर की है और इस खबर की पुष्टि की है कि उनका निधन हो गया है। करीमा बेगम लंबे समय से बीमार चल रही थीं। बताया जाता है कि ए.आर. रहमान अपनी मां के बेहद करीब थे। एक बार उन्होंने कहा था-वह जिस तरह से सोचती थीं और फैसले लेती थीं, उस लिहाज से कहूं तो वह आध्यात्मिक तौर पर मुझसे कहीं अधिक ऊंचाई पर थीं। उन्होंने मुझे 11वीं क्लास में स्कूल की पढ़ाई से हटाकर संगीत की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित किया था। यह उनकी ही सोच थी कि मैं संगीत की दिशा में जाऊं और मैं आज इस स्थिति में हूं।

रहमान का जन्म 6  जनवरी 1967 को चेन्नई, तमिलनाडु, भारत में हुआ। रहमान को संगीत अपने पिता से विरासत में मिली है| उनके पिता आरके शेखर मलयाली फ़िल्मों में संगीत देते थे। रहमान ने संगीत की शिक्षा मास्टर धनराज से प्राप्त की। मात्र 11 वर्ष की उम्र में अपने बचपन के मित्र शिवमणि के साथ रहमान बैंड रुट्स के लिए की-बोर्ड (सिंथेसाइजर) बजाने का कार्य करते थे। वे इलियाराजा के बैंड के लिए काम करते थे। रहमान को ही चेन्नई के बैंड “नेमेसिस एवेन्यू” के स्थापना का श्रेय जाता है।

वे की-बोर्ड, पियानो, हारमोनियम और गिटार सभी बजाते थे। वे सिंथेसाइजर को कला और टेक्नोलॉजी का अद्भुत संगम मानते हैं। रहमान जब नौ साल के थे तब उनके पिता की मृत्यु हो गई थी और पैसों के लिए घरवालों को वाद्य यंत्रों को भी बेचना पड़ा। हालात इतने बिगड़ गए कि उनके परिवार को इस्लाम अपनाना पड़ा। बैंड ग्रुप में काम करते हुए ही उन्हें लंदन के ट्रिनिटी कॉलेज ऑफ म्यूजिक से स्कॉलरशिप भी मिली, जहाँ से उन्होंने पश्चिमी शास्त्रीय संगीत में डिग्री हासिल की।

अपने बचपन के संघर्ष को याद करते हुए ए.आर रहमान ने बताया था कि जब मैं नौ साल का था तभी मेरे पिता का देहांत हो गया था। तब मेरी मां पिताजी के म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट्स को उधार पर देकर घर चलाती थीं। तब लोगों ने उन्हें इन्हें बेचने की सलाह भी दी थी, लेकिन मां ने यह कहते हुए इनकार कर दिया था कि मेरा बेटा इनका ख्याल रखेगा। और आज मैं जो कुछ भी हूं, उन्हीं की बदौलत हूं।