एंटीबॉडी समय के पहले ही खत्म, इसलिए दूसरी लहर में कोरोना घातक 

ऑनलाइन टीम .वाराणसी : कोरोना की दूसरी लहर ने हाहाकार मचा रखा है। आंकड़े अपना ही रिकार्ड तोड़ रहे हैं। डॉक्टर, वैज्ञानिक और शोधकर्ता हैरान-परेशान हैं कि कोरोना बेकाबू् क्यों हो रहा। काशी हिन्दु विश्व विद्यालय (बीएचयू) के वैज्ञानिकों के शोध में इसका जवाब सामने आया है।

बीएचयू के जीव विज्ञान विभाग के प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे की अगुआई में वैज्ञानिकों की टीम ने बनारस में लोगों का परीक्षण किया। पता चला कि इस हाहाकार के पीछे एंटीबॉडी का मामला छिपा हुआ है। शोध  के अनुसार,  पहली लहर में संक्रमित न होने वालों में वैक्सीन लगवाने के बाद एंटीबॉडी बनने में चार सप्ताह तक का समय लगा, जबकि संक्रमित हो चुके लोगों में वैक्सीन लगने के हफ्ते-दस दिन में एंटीबॉडी बन गई और जो लोग पिछली बार संक्रमित हुए थे, वे दूसरी लहर में जल्द ठीक हो गए। लेकिन जो पहली लहर की चपेट में आने से बच गए थे, उनमें मृत्यु दर ज्यादा देखी जा रही है।

ज्ञानेश्वर चौबे के अनुसार, बीते वर्ष सितम्बर से नवम्बर के बीच सीरो सर्वे में जिन 100 लोगों में 40 फीसदी तक एंटीबॉडी थी, उनमें से 93 लोगों में पांच महीने बाद यानी कि इस साल मार्च तक 4 फीसदी ही एंटीबॉडी बची थी। सिर्फ सात लोग ऐसे मिले जिनमें पूरी एंटीबॉडी बची है, जबकि सीरो सर्वे के समय यह अनुमान लगाया गया था कि जिन लोगों में एंटीबॉडी मिली है वह छह महीने तक बनी रहेगी। लेकिन ऐसा हुआ नहीं है। कोरोना की पहली लहर में बिना लक्षण वाले मरीजों की संख्या बहुत अधिक थी और उनमें एंटीबॉडी नाममात्र की बनी थी। ऐसे में बिना लक्षण वाले कोरोना वायरस का आसानी से निशाना बने और मौत भी उन्हीं की सबसे अधिक हुई। जिनमें एंटीबॉडी बनी भी तो छह महीने से पहले ही खत्म होने की वजह से ऐसे लोग कोरोना की दूसरी लहर की चपेट में आने से बच नहीं पा रहे हैं।

वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि कोरोना की घातक दूसरी लहर में हर्ड इम्युनिटी विकसित नहीं हो सकती है। ऐसे में कोरोना से लड़ने में वैक्सीन ही कारगर हथियार है।