कोरोनाकाल में एक और गंभीर समस्या, देर तक काम करना काफी नुकसानदेह 

ऑनलाइन टीम. जेनेवा : एक सर्वे में पता चला है कि हम कंप्यूटर पर काम करते हुए या टीवी देखते हुए करीब 12 घंटे बैठे हुए बिता देते हैं। यदि इसमें सोने के घंटों को भी मिला लें, तो हम 19 घंटे निष्क्रिय बिता देते हैं। कुछ अध्ययनों के अनुसार ज्यादा घंटे बैठने वाले लोग ज्यादा सक्रिय लोगों से दो साल कम जीते हैं।

दरअसल, हमारा शरीर शर्करा से एक खास तरीके से निपटता है। ज्यादा बैठना शरीर के उसी खास तरीके पर अपना असर डालता है। जब हम कुछ खाते हैं, हमारा शरीर उसे ग्लूकोज में बदलता है, और फिर यह रक्त के जरिए दूसरी कोशिकाओं में प्रवाहित हो जाता है। ग्लूकोज शरीर को जरूरी ऊर्जा देने के लिए अनिवार्य है। मगर यदि शरीर में इसका ऊंचा स्तर लगातार बना रहे तो हमारे लिए डायबिटीज और दिल के रोग जैसी बीमारियों का खतरा पैदा हो जाता है। शरीर में मौजूद पेन्क्रियाज ग्लूकोज के आदर्श स्तर को बनाए रखने के लिए आवश्यक हारमोन इंसूलिन पैदा करता है। हम शारीरिक रूप से जितना सक्रिय होते हैं, पेन्क्रियाज यह प्रक्रिया उतनी कुशलापूर्वक संपन्न करता है।

कोरोनाकाल में नई परेशानी सामने आई है। लोग घरों में कैद हैं और ऑनलाइन काम को तरजीह दी जा रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक दुनिया भर में देर तक काम करने की आदत के चलते हर साल हज़ारों लोगों की मौत हो रही है।  194 देशों के आंकड़ों पर आधारित एक सर्वे के मुताबिक सप्ताह में 55 घंटे या उससे अधिक काम करने से स्ट्रोक का 35% अधिक जोखिम और 35-40 घंटे की तुलना में हृदय रोग से मरने का 17% अधिक जोखिम होता है। ये स्टडी 2000-2016 के दौरान की गई है। लिहाजा इसमें कोरोना से प्रभावित लोगों के आंकड़े नहीं है।

आइये विस्तार से समझते हैं कि लम्बे समय तक बैठे रहने के क्या-क्या हानिकारक परिणाम हो सकते हैं :

पाचन ग्रंथि में बदलाव: लंबे समय तक एक जैसी स्थिति में बैठे रहने से पाचक ग्रंथि अधिक सक्रिय हो जाती है और इस कारण से ज्यादा इंसुलिन पैदा होता है। इस हार्मोन से कोशिकाओं को ग्लूकोज मिलता है, लेकिन बैठे रहने से मांसपेशियों की कोशिकाएं निष्क्रिय होती जाती हैं। इसके चलते बॉडी में ज्यादा मात्रा में इंसुलिन बनता है और आगे जाकर मधुमेह और अन्य बीमारियां हमें घेर लेती हैं।

मांसपेशियों में कमजोरी: जब आप खड़े होते हैं या किसी भी काम में सक्रिय होते हैं, तो मांसपेशियां काम करती रहती हैं। लेकिन जब आप केवल बैठे रहते हैं, तो पीठ और पेट की मांसपेशियां ढीली पड़ने लगती हैं। इस स्थिति के चलते आपके कूल्हों और पैरों की मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं।

मेंटल हेल्थ पर असर : लंबे समय तक बैठे रहने से मस्तिष्क भी प्रभावित होता है और इसकी कार्यप्रणाली भी धीमी हो जाती है।

मांसपेशियों की सक्रियता से मस्तिष्क में ताजे खून और ऑक्सीजन की मात्रा पहुंचती रहती है, जिससे आपका दिमाग सक्रिय रहता हैं और आपको बोरियत महसूस नहीं होती। लेकिन बैठे रहने से मस्तिष्क की क्षमता पर भी बुरा असर पड़ सकता है।

WHO के अनुसार, कोरोनाकाल में दक्षिण पूर्व एशिया और पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में रहने वाले लोग, जिसमें चीन, जापान और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं – सबसे अधिक प्रभावित रहे। WHO के अनुसार, जब लॉकडाउन जैसे फैसले लिए जाते हैं, तो कामकाजी घंटों की संख्या में लगभग 10 प्रतिशत की वृद्धि होती है। यानी इसका सीधा असर कर्मचारी के स्वास्थ्य पर पड़ता है।