पुणे। समाचार ऑनलाइन
गुरुवार को आज का काला दिन जब भी किसी पुणेकर के जहन में आता है, वह डर से कांप उठता है।इसी दिन पुणे का इतिहास और भूगोल बदल गया था। महाराष्ट्र की सांस्कृतिक राजधानी पुणे में दो बार कुछ ऐसा घटा जिसने पुणे का सब कुछ बदल कर रख दिया। पहला था 1761 में लड़ी गई पानीपत की तीसरी लड़ाई और दूसरी थी पुणे में 1961 में आई ‘पानशेत बाढ़’। इस बाढ़ ने पुणे शहर को पूरी तरह तबाह और बर्बाद कर दिया था। तक़रीबन 57 साल बीत जाने के बाद आज के दिन को पुणे के लोग तबाही के दिन के रूप में याद करता है। 12 जुलाई 1961 की सुबह 7 बजकर 10 मिनट पर पानशेत बांध फूट गया, बंडगार्डन ब्रिज छोड़ पुणे के सभी ब्रिज पानी में डूब गए। मुठा नदी के दक्षिणी किनारे पर बसे शनिवार पेठ, नारायण पेठ, कसबा पेठ और सोमवार पेठ जैसे इलाकों की अपरिमित हानि हुई।
1950 तक पुणे की प्यास 13 किमी दूर मुठा नदी पर बनाये खड़कवासला बांध से बुझती रही। बढ़ती आबादी के लिये यह पानी अपर्याप्त साबित होने लगा। शहरवासियों और खेती के लिए पर्याप्त पानी मिले इसके लिए खड़कवासला के पश्चिम दिशा में पुणे से 38 किमी दूर पानशेत में अंबा नदी पर मिट्टी का बांध बनाना तय किया गया। 10 अक्टूबर 1957 को इसका निर्माण कार्य शुरू किया गया। इसके पहले चरण में 6 और दूसरे चरण में 11 टीएमसी क्षमता का बांध बनाया जाना था, इसका निर्माण जून 1962 तक पूरा करना था। 1959- 1960 में इसका ब्यौरा लिया गया। तब अत्याधुनिक तकनीक से सालभर पहले ही बांध का निर्माण पूरा किया जा सकता है, यह ध्यान में आते ही केंद्र सरकार ने वैसा निर्णय लिया। इसके अनुसार रूपरेखा तैयार की गई। मगर नियोजन में शामिल कई जरूरतें जून 1961 तक पूरी न हो सकी।
इसी माह में भारी बारिश के चलते इसका निर्माण अधूरे में छोड़ना पड़ा। हाँलाकि जलाशय लबालब भर चुका था और उसका पानी तेज रफ्तार से पुणे की ओर बढ़ने लगा। सेना की मदद से डबर की बोरियों से रिसाव रोकने की कोशिश की गई, मगर कोई लाभ नहीं हुआ। आखिर 12 जुलाई का प्रलयकारी दिन आ ही गया। पानशेत बांध फट गया उसका पानी पुणे की ओर तेजी से बढ़ने लगा। यह पानी खड़कवासला बांध में पहुंचने पर उसे भी खतरा हो सकता है, यह ध्यान में लेकर विस्फ़ोट के जरिए बांध का मध्य हिस्सा ध्वस्त किया गया। बांध फटने की अफवाहें फैलने से प्रशासन ने एहतियात के तौर पर नदी परिसर के सभी रास्ते बंद कर दिये। इस बाढ़ में जीवित हानि टालने में सफलता मिली मगर संपत्तियों का काफी नुकसान हुआ। सैकड़ों घर तबाह हो गए। लोगों के लिए गोखलेनगर, पर्वती, राजेन्द्रनगर, महर्षिनगर में तत्काल घर बनाए गए। हांलाकि आज भी बाढ़ग्रस्त लोगों के नाम पर ये घर आज भी नहीं हो सके हैं। उनका मसला आज भी लंबित है। जुलाई माह की 12 तारीख आते ही पुणेकरों के जेहन में पानशेत बांध दुर्घटना की याद ताजा हो जाती हैं। वाकई में यह दिन पुणेकरों के लिए काला दिन साबित हुआ।