एक ऐसा शहर जहां 75 दिनों तक मनाया जाता है दशहरा

बस्तर | समाचार ऑनलाइन

पुरे देश में बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश देने के लिए दशहरा बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। मान्यता है कि, लंका में 9 दिन हुए लगातार युद्ध के बाद दशहरा यानी विजय दशमी के दिन ही भगवान राम ने रावण का वध किया था। इस साल दशहरा 19 अक्टूबर को मनाया जाएगा। इस दिन लोग रावण दहन करते हैं। लेकिन देश में एक ऐसा शहर भी है जहां 75 दिनों तक दशहरा मनाया जाता है। खास बात ये है कि दशहरा के दिन यहां भगवान राम को समर्पित नहीं बल्कि देवी दंतेश्वरी के लिए मनाया जाता है।

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छत्तीसगढ़ के बस्तर शहर –

छत्तीसगढ़ के बस्तर में दशहरा 75 दिनों तक मनाया जाता है। यहां दशहरा को बस्तर दशहरा के नाम से जाना जाता है। हर साल यहां दशहरे के समय हज़ारों लोग इस दशहरा में शामिल होने आते है। मान्यता है कि, भगवान राम ने अपने वनवास का लगभग दस साल दंडकारण्य में बिताया था। बस्तर को एक प्राचीन इलाका माना जाता है इसके लिए ही यहां हर साल 75 दिनों तक दशहरा मनाया जाता है।

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मां दंतेश्वरी पूजा –

बस्तर शहर में मां दंतेश्वरी की पूजा की जाती है। दशहरे के दिन उनकी विशेष पूजा होती है और एक भव्य रथ पर दंतेश्वरी मां की सवारी निकाल कर पूरे शहर में घुमाई जाती है। मां दंतेश्वर को समर्पित इस दशहरे की तैयारियां और जश्न 75 दिन पहले से होने लगती है। सावन महीने में पड़ने वाली हरियाली अमावस्या से इन तैयारियों की शुरूआत हो जाती है। इसी दिन से मां दंतेश्वरी के लिए लकड़ी के भव्य रथ जिसको पाट जात्रा कहा जाता है। उसको बनाने की शुरूआत हो जाती है।

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मान्यताएं –


75 दिनों तक चलने वाला यह त्योहार दशहरे बाद तक चलता है और मुरिया दरबार रस्म से इसकी समाप्ति होती है। इस रस्म में बस्तर के महाराज अपना दरबार लगाकर आम नागरिकों की समस्याएं सुनते हैं और इसका हल निकालते हैं।

यहां रथ बनाने की परंपरा 600 साल पुरानी है। नवरात्रि शुरू होने के बाद इस रथ की परिक्रमा शुरू होती है।

पहले दिन मिरगान जाति की एक छोटी बच्ची को देवी बनाया जाता है जिसे कांटे के एक झूले पर बिठाया जाता है। इस परंपरा को काछन गादी कहते हैं। इसके बाद काछन देवी से दशहरा मनाने की अनुमति ली जाती है। इसके बाद ही यह परंपरा आगे बढ़ती है और मां दंतेश्वरी की पूजा की जाती है।

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