2010 से 2015के बीच हुआ घोटाला
पुलिस से मिली जानकारी के अनुसार 2010 से 2015 के बीच बैंक के तत्कालीन संचालक मंडल, पदाधिकारियों ने कर्जदारों को बेवजह कर्ज दिया और कई कर्जदारों पर बकाया होने के बावजूद उन्हें नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट दिया गया। लोन के लिए जमा की गई प्रॉपर्टी भी उन्हें वापस कर दी गई। कई विवादित प्रॉपर्टी को जमा रखकर संचालक मंडल ने यह कर्ज दिया।
पूर्व कर्मचारियों के नाम पर भी निकाली गई सैलरी
संचालक और पदाधिकारियों ने बैंक के नियम के खिलाफ पैसे निकाले और रिज़र्व बैंक के ऐतराज जताये जाने के बावजूद आर्थिक लेनदेन जारी रखा। नौकरी छोड़ कर गए कर्मचारियों के नाम पर सैलरी निकाली गई। इस तरह से संचालक मंडल, पदाधिकारियों व कुछ कर्जदारों ने इस अवधि में 38 करोड़ 75 लाख 20 हज़ार 641 रुपए का घोटाला किया। सुपे दवारा किये गए ऑडिट में यह घोटाला सामने आया है। इसके बाद सुपे ने आर्थिक अपराध शाखा में शिकायत दर्ज कराई।