Pune News | ‘पुणे किसी के बाप का नहीं हैं’ ये बात मनसे याद रखे श्रीमंत कोकाटे का वसंत मोरे को जवाब

पुणे – (Pune News) देश में लोकतंत्र है। हमारे पास अफगानिस्तान (Afghanistan) जैसा तालिबान (Taliban) राज्य नहीं है। राज ठाकरे (Raj Thackeray) को दादर में घूमने नहीं देंगे यह हास्यास्पद है। वैसे ही प्रवीण गायकवाड (Pravin Gaikwad) को पुणे ने घूमने नहीं देंगे यह भी हास्यास्पद है। गायकवाड भी पुणे से है न? इसलिए मनसे (MNS) याद रखे पुणे (Pune News) किसी के बाप का नहीं हैं। इस तरह श्रीमंत कोकाटे (Shivshri Shrimant kokate ) ने वसंत मोरे (Vasant More) को जवाब दिया है।

मनसे के राज ठाकरे को यह पता होना चाहिए हम पुरंदरेना लोटंगना की वजह से बड़े हुए हैं। इसलिए इस तरह के भ्रम में न रहें कि मैं प्रवीण गायकवाड़ की भूमिका का समर्थन करता हूं।

कोकाटे ने बाबासाहेब पुरंदरे के शिवचरित्र लेखन की भी आलोचना की है। उन्होंने कहा कि बाबासाहेब का शिवचरित्र उनके राज्य में हुए धार्मिक दंगों के लिए जिम्मेदार था। पुरंदरे ने एक ऐसी पृष्ठभूमि तैयार की जिसने जिजाऊ और शिवराय को बदनाम किया। अगर मनसे इससे सहमत है तो उन्हें महाराष्ट्र के सामने आगे आकर इसकी घोषणा करनी चाहिए। महाराष्ट्र को यह बात पसंद नहीं है कि पुरंदर लगातार इसका समर्थन करते हैं। उन्होंने कहा है कि जो लेखन का समर्थन करता है वह महाराष्ट्र का दुश्मन है।

प्रवीण गायकवाड़ द्वारा राज ठाकरे की आलोचना के बाद पुणे में मनसे ने आक्रामक रुख अपनाया है। मनसे पुणे शहर के अध्यक्ष नगरसेवक वसंत मोरे ने कहा कि मैंने आपको 2019 के लोकसभा चुनाव में सड़कों पर घूमते देखा है। मैं तुम खुद गली-गली घूमे है। मैंने प्रविण गायकवाड ऐसे खुद को आप कहते थे। तुम्हे राज ठाकरे के बारे में क्या पता होगा। पुणे में घूमना मुश्किल हो जायेगा। इस पर कोकाटे ने जवाब दिया है।

क्या कहा प्रवीण गायकवाड़ ने?
राजनीति में कुछ नया नहीं कर पाने वाले और राजनीति में बुरी तरह विफल रहे राज ठाकरे अब अपने राजनीतिक लाभ के लिए महाराष्ट्र में इन सभी संघर्षों को एक बार फिर से उभारने की कोशिश कर रहे हैं। जिस तरह उन्हें पुरंदरों से परे इतिहास की कोई समझ नहीं है, उसी तरह उन्हें यहां के राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक संघर्षों की भी समझ नहीं है। संभाजी ब्रिगेड के प्रदेश अध्यक्ष प्रवीण गायकवाड़ ने एक फेसबुक पोस्ट के जरिए ऐसी टिप्पणी की है।

लेकिन इस संघर्ष को स्थापित करते समय यह स्पष्ट हो गया है कि वह 1899 से 1999 के सौ वर्षों के दौरान महाराष्ट्र में हुए सांस्कृतिक संघर्ष और अपने दादा प्रबोधनकर ठाकरे की विरासत को भूल गए हैं। बेशक, उनकी वर्तमान संरचना प्रबोधंकर ठाकरे की गैर-ब्राह्मण विचारधारा से अलग है और पुरंदरे की ब्राह्मणवादी वर्चस्व की विचारधारा के करीब है! उन्होंने भी यही कहा है।