भारतीय होकर मरना चाहते थे 104 साल के बुजुर्ग, नहीं हटा ‘विदेशी’ का ठप्पा 

गुवाहाटी. ऑनलाइन टीम : ‘मोदी आमारा भगवान (मोदी हमारा भगवान है)। वह यहां नागरिकता कानून से सबका समाधान निकालेगा। हम सब भारतीय हो जाएंगे।’ दिल की बात जुबां पर आई, लेकिन मलाल रह गया। असम में नागरिकता कानून लागू होने और खुद से ‘विदेशी’ का ठप्पा हटाए जाने की आस लगाए 104 साल के चंद्रधर दास का रविवार को दिल की बीमारी के बाद निधन हो गया।

दास की बेटी न्युति ने बताया कि उनके पिता को हमेशा यही उम्मीद रही कि एक दिन उन्हें भारतीय नागरिकता मिल जाएगी। वह जहां भी मोदी के पोस्टर देखते, हाथ जोड़कर नमस्कार करते और सिर झुकाते।  मोदी से उन्हें बड़ी उम्मीद थी।  वह सिर्फ भारतीय होकर मरना चाहते थे। हमने बहुत कोशिश की। कोर्ट-कोर्ट में भटके। वकीलों से लेकर सामाजिक कार्यकर्ताओं तक से मिले, सभी पेपर्स जमा किए, लेकिन नागरिकता कानून ने हमारे लिए कुछ नहीं किया।

चंद्रधर दास के बेटे गौरांग ने बताया कि वह उन्हें पूर्वी पाकिस्तान से भारत आने की कहानियां सुनाते थे। वहां काफी हत्याएं हो रही थीं, इसलिए वह सीमा पारकर भारत के त्रिपुरा चले आए थे। यह 50-60 के दशक की बात होगी। त्रिपुरा से दास कठिन यात्रा करके असम पहुंचे थे। जीने-खाने के लिए वह मूरी के लड्डू बेचते थे। फिर एक दिन साल 2018 में कुछ अधिकारियों ने उन्हें घर से उठा लिया और विदेशियों के लिए बने डिटेंशन कैंप में डाल दिया। दो साल पहले उन्हें विदेशियों के लिए बनाए गए डिटेंशन कैंप में रखा गया था, जहां उन्होंने तीन महीने बिताए थे। इसके बाद उन्हें बेल मिल गई थी।

परिवार ने बताया कि जीवन के अंतिम दिनों में दास डिमेंशिया के शिकार हो गए थे, लेकिन जब भी बोलते थे तो अपने केस के बारे में पूछते थे।  दास भारतीय नागरिकता के साथ मरना चाहते थे, लेकिन कानून को लागू होने की प्रक्रिया में देरी के कारण वह ‘विदेशी’ के रूप में ही दुनिया से चले गए।