राहुल गाँधी की ये 10 बड़ी गलतियों से हारी कांग्रेस?

नई दिल्‍ली : समाचार ऑनलाइन – लोकसभा चुनाव का नतीजा सामने हैं। एक समय पर देश की सबसे बड़ी पार्टी माने जाने वाली और देश पर 60 साल राज करने वाली कांग्रेस का फिर एक बार बड़ा पराजय हुआ है। 2019 चुनाव में पीएम मोदी के मुकाबले विपक्ष के सबसे बड़े नेता राहुल गांधी ही थे। चुनाव प्रचार के दौरान उन्‍होंने कई मुद्दे उठाए जिसको लेकर काफी चर्चाएं हुई और नतीजे आने के बाद उन पर सवाल भी उठाए जा रहे हैं। कुल मिलाकर अगर बात करें तो राहुल गांधी का चुनावी अभियान सियासी परिवक्‍वता की मिसाल बन गया। इस दौरान राहुल गांधी ने कई ऐसी ग‍लतियां की, जिसे लेकर राजनीतिक विश्‍लेषकों ने भी चिंता जताई।

1. नरेंद्र मोदी को बार-बार ‘चौकीदार चोर’ कहना –

नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता से भारत तो क्या विश्व भर में कोई अनजान नहीं था। ऐसे में कांग्रेस अध्‍यक्ष राहुल गांधी ने चुनावों से पहले ही राफेल डील मामले को लेकर ‘चौकीदार चोर है’ का नारा देना शुरू कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस मामले में क्‍लीनचिट देने के बाद भी उन्‍होंने अपने इस नारे पर रोक नहीं लगायी। इस मुद्दे को लेकर उनका उतावलापन इस कदर था कि सुप्रीम कोर्ट में चल रहे मामले में भी उन्होंने हस्‍तेक्षेप किया जिसका बीजेपी को बड़ा फायदा हुआ और उनके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट की अवमानना का मामला दर्ज किया गया। इसके लिए उन्‍हें सुप्रीम कोर्ट में माफी मांगनी पड़ी।

पीएम नरेंद्र मोदी की सुजबुझ, परिपक्वता के सामने राहुल गाँधी का व्यवहार अपरिपक्व दिखने लगा। देश के पीएम पद की दावेदारी के लिए खड़े हुए नेता को ऐसी बात शोभा कहाँ से देती? राहुल यह समझने को तैयार नहीं थे कि सुप्रीम कोर्ट से क्‍लीन चिट मिलने के बाद इस मामले में जनता की उतनी दिलचस्‍पी नहीं थी, जितनी वह दिखाना चाह रहे थे। वह बार-बार कह रहे थे कि चौकीदार चोर है, जबकि देश की ज्‍यादातर जनता इसे मानने को तैयार नहीं थी। यानी उन्‍हें देश के मुद्दों के बारे में पता ही नहीं था। यही कारण है कि उनका इस मामले जरूरत से ज्‍यादा दिलचस्‍पी दिखाना उनकी सियासी अपरिपक्‍वता थी और उनका बचकानापन था।

2. केजरीवाल से नहीं लिया सबक –

इसमें कोई संदेह नहीं कि पीएम मोदी देश के सबसे लोकप्रिय नेता हैं। यही बात राहुल गांधी नहीं समझ सके, उन्‍होंने बार-बार नरेंद्र मोदी पर हमला बोला। पीएम की नीतियों को लेकर कोई सवाल कर सकता है लेकिन देश की जनता यह मानने को तैयार नहीं थी कि चौकीचार चोर है। यही कारण है कि उनके इस नारे को लेकर सवाल खड़े किए गए। यहां तक कि कांग्रेस के थिंकटैंक ने भी उन्‍हें कोई आइडिया नहीं दिया। दिल्‍ली के मुख्‍यमंत्री भी पीएम मोदी के खिलाफ काफी आक्रामक रहते थे और उनको लेकर आए दिन आगबबूला रहते थे। लेकिन समय रहते वह समझ गए कि पीएम मोदी देश के सबसे लोकप्रिय नेता हैं और उनके मुकाबले कोई नहीं है। केजरीवाल ने मोदी का नाम लेना छोड़ दिया और अपने काम पर फोकस किया और राहुल गांधी ने बार-बार पीएम मोदी का नाम लेकर हमला बोला जिसका उल्‍टा असर पड़ा।

3. ट्वीटर के माध्यम से “मोदीलाइ” का आरोप लगाना –

चुनाव प्रचार के दौरान राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री मोदी पर कटाक्ष करते हुए ट्वीट्स के माध्यम से हमला बोला था। उन्‍होंने अपने ट्विटर अकाउंट पर मॉर्फ्ड इमेज शेयर की थी, जिसमें एक शब्द मोदीलाइ (Modilie) सर्च करते हुए दिखाया गया था। मोदीलाइ शब्द के पीछे उनका मतलब था पीएम मोदी जूठे हैं। कैप्शन में राहुल ने लिखा था कि इंग्लिश डिक्शनरी में एक नया शब्द जुड़ा है, जिसका स्नैपशॉट नीचे है। इसके साथ ही कैप्शन में स्माइली भी बनाया गया था। आगे चलकर मोदीलाइ शब्द पर ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी ने राहुल के दावे को ही रफादफा कर दिया और क्सफोर्ड डिक्शनरी ने ट्वीट कर कहा कि “हम इस बात की पूर्ति करते हैं कि कांग्रेस अध्‍यक्ष राहुल गांधी ने मोदीलाइ (Modilie) शब्‍द के बारे में स्‍क्रीन शॉट में जो दावे किए हैं वे फर्जी हैं। यह शब्‍द हमारी किसी डिक्‍शनरी में नहीं है।” राहुल गांधी को इस बात से खुद की बेइज्‍जती का सामना करना पड़ा।

4. सुप्रीम कोर्ट क्‍लीनचिट के बाद भी राफेल डील पर डटे रहना –

राहुल गांधी के बारे में कहा जाता है कि उनके सलाहकार उन्‍हें जितना कहते हैं, उतनी ही वह रणनीति बना पाते हैं। यानी उन्‍हें देश के जमीनी मुद्दों के बारे में जानकारी ही नहीं है। उन्‍होंने एक बेमतलब के मुद्दे पर जरूरत से ज्‍यादा जोर दिया।

5. प्रियंका गांधी को बहुत देर से जिम्‍मेदारी देना –

प्रियंका गांधी ने लोकसभा चुनावों से ठीक पहले पूर्वी उत्‍तरप्रदेश के महासचिव की जिम्‍मदोरी हाथ में ली। इसके बहुत सारे नकारात्मक कारन निकले गए। कहा गया कि मोदी का मुकाबला करने के लिए राहुल गांधी अकेले सक्षम नहीं हैं, इसीलिए वे प्रियंका गांधी को लेकर आए। चुनावों के ठीक पहले जिम्‍मेदारी देने का यह भी मतलब निकाला गया कि उनके लिए राजनीति पिकनिक स्पॉट की तरह है। जब चुनाव खत्‍म हो जाते हैं तो वह अपने घर जाकर बैठ जाती हैं। हालांकि लोगों के बीच प्रियंका की छवि को इंदिरा गाधी से जोड़कर देखा गया। अगर लोगों के दिलों में जगह बनानी थी तो उन्‍हें राजनीति में पहले आना चाहिए था। लोगों के मुद्दे पर संघर्ष करना चाहिए था। लेकिन ऐसा नहीं हो सका। पीएम मोदी को लेकर लोगों के बीच ऐसी छवि है कि वह 24 घंटे में 18 घंटे काम करते हैं और लोगों के हित के बारे में सोचते रहते हैं। वहीं दूसरी तरफ गांधी परिवार के लोग हैं।

चुनावों के दौरान प्रियंका गांधी ने यह बयान दिया है कि अगर पार्टी चाहेगी तो मैं बनारस से लड़ने के लिए तैयार हूं। अंतत वह बनारस से चुनाव नहीं लड़ी, इसका नकारात्‍मक असर पड़ा। अगर वह वहां से लड़कर हारतीं तो भी लोगों के बीच फाइटर होने का संदेश जाता लेकिन ऐसा नहीं हो सका। अंतत: बनारस से चुनाव लड़ने का मुद्दा हवा हवाई ही रहा।

6. देश में पार्टी संगठन ना होना –

संगठन के बगैर कोई पार्टी लंबे समय तक शासन नहीं कर सकती है। देश में कांग्रेस सबसे पुरानी पार्टी है। इसके बावजूद कई राज्‍य ऐसे हैं जहां मजबूत पार्टी संगठन नहीं है। इसमें देश के सबसे बड़े राज्‍य यूपी, बिहार और पश्चिम बंगाल शामिल हैं। वहां पर पार्टी संगठन को खड़ा करने की कोशिश नहीं की गई। यहां पार्टी संगठन के बजाय व्‍यक्तियों के सहारे है। यही कारण है कि कुछ राज्‍यों में कांग्रेस को महत्‍व नहीं दिया गया। इसके साथ पार्टी ने यह समझने की कोशिश नहीं की कि कौन सा वर्ग, समुदाय और जाति उसका मतदाता है।

7. कई राज्‍यों में गठबंधन नहीं करना –

चुनावों के ठीक पहले तक शिवसेना और भाजपा के बीच काफी खींचातानी थी। इसके बाद भाजपा अध्‍यक्ष ने आगे बढ़कर शिवसेना के साथ गठबंधन किया। दोनों पार्टियों को ज्ञात था कि अगर वह अलग-अलग लड़ेगी तो उन्‍हें भारी नुकसान होगा। यही कारण है कि दोनों ने गठबंधन का रुख किया और इसका दोनों पार्टियों को लाभ भी हुआ। ठीक ऐसे ही भाजपा ने कई और प्रदेश में समझौता किया। हालांकि कांग्रेस ने भी कई राज्‍यों में समझौता किया जिनमें तमिलनाडु, झारखंड, बिहार, महाराष्‍ट्र, केरल और कर्नाटक शामिल रहे। लेकिन कई ऐसे राज्‍य भी रहे जिनमें गठबंधन नहीं हो सका। जिनमें दिल्‍ली, पश्चिम बंगाल, राजस्‍थान, हरियाणा जैसे राज्‍य शामिल रहे।

8. दो जगह से चुनाव लड़ना और असमंजस पैदा करना –

देश में पहले भी ऐसा हुआ हैं की बड़े नेता पहले भी कई जगहों से चुनाव लड़े और इसका लोगों के बीच सकारात्‍मक संदेश गया है। कांग्रेस अध्‍यक्ष राहुल ने इस बार दो जगहों से, उत्‍तर प्रदेश के अमेठी और केरल के वायनाड से लोकसभा चुनाव लड़ा। इसका लोगों के बीच गलत संदेश गया। लोगों के बीच यह संदेश गया कि राहुल को अमेठी से हारने का डर है, इसलिए वह केरल के वायनाड से चुनाव लड़ रहर हैं। भले ही उन्‍होंने वायनाड में बड़ी जीत हासिल की हो लेकिन कांग्रेस का गढ़ माना जानेवाला अमेठी वह हाथ से खो बैठे। भाजपा ने चुनावों के दौरान बार-बार यह कहा कि राहुल ने दूसरी ऐसी सीट का चुनाव किया जोकि अल्‍पसंख्‍यक बहुल है। यानी उन्‍हें देश के बहुसंख्‍यक हिंदुओं पर भरोसा नहीं है।

9. एजेंडा सेट नहीं कर पाए –

चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस अपना एजेंडा सेट करने में नाकाम रही। वह देश के गरीब लोगों, मध्‍यवर्ग के लिए क्‍या करेगी यह समझाने में असफल रही। हालांकि कांग्रेस ने देश में गरीबों के लिए न्‍याय स्‍कीम का बहुत प्रचार किया। देश के पांच करेाड़ सबसे बड़े गरीबों को 72 हजार रुपये प्रति वर्ष देने का वायदा भी किया। इसका लोगों पर कोई सकारात्‍मक असर नहीं पड़ा उल्टा रोल गाँधी भारी तरह से ट्रोल हो गए। गरीबों को कांग्रेस समझाने में असफल रही कि इस योजना के तहत कैसे लाभ देगी। इसके सामने मोदी सरकार की कई योजनाएं जैसे उज्‍जवला योजना, जन धन योजना, किसानों को छह हजार का मुआवजा, सबके लिए मकान, सभी के लिए शौचालय से गरीबों को सीधे लाभ हुआ।

यही कारण है कि भाजपा को गरीबों और निम्‍न मध्‍य वर्ग को लुभाने में ज्‍यादा कामयाब रही। देश के गरीबों ने राहुल की न्‍याय स्‍कीम के बजाय मोदी सरकार की योजनाओं पर ज्‍यादा विश्‍वास किया। देश के मध्‍यवर्ग के लिए कांग्रेस की क्‍या देगी, इसका कोई ब्‍लूप्रिंट दिया। अगर कहा जाए तो कांग्रेस के पास मध्‍य वर्ग को लुभाने के लिए कुछ प्‍लान नहीं दिया। यही कारण है कि मध्‍यवर्ग का विश्‍वास जीतने में राहुल गांधी असफल रहे। यही कारण है कि देश के ज्‍यादातर शहरों में भाजपा विजयी रही।

10. नेताओं के विवादित बयानों पर कोई रोक नहीं –

कांग्रेस ने चुनाव प्रचार के दौरान अपने नेताओं के विवादित बयानों पर कोई रोक नहीं लगाई। इसका बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ा। इस बार कांग्रेस के वरिष्‍ठ नेता और थिंकटैंक सैम पित्रोडा के बयानों से कांग्रेस को भारी नुकसान हुआ है। उन्‍होंने अपने बयान में कहा था कि ‘1984 हुआ तो हुआ। आपने पांच साल में क्‍या किया।’ इसका विशेष रूप से सिख समुदाय के बीच गलत संदेश गया। यही कारण है कि पंजाब में चुनाव प्रचार के दौरान उन्‍हें सैम पित्रोडा के बयान पर माफी मांगनी पड़ी। माना जाता है कि कांग्रेस अपने पुराने ओल्‍ड गार्ड पर जरूरत से ज्‍यादा निर्भर है। यही कारण है कि कांग्रेस अपनी नीतियों में भी ज्‍यादा परिवर्तित नहीं कर पाती है। कांग्रेस उनके कार्यकर्ताओं की बड़ी से बड़ी गलती करने के बावजूद कार्रवाई करने में असमर्थ रहा।