हेडमास्टर की लगन से प्राथमिक स्कूल बना ‘आदर्श’

लखनऊ, 21 जून (आईएएनएस)| एक ओर जहां देश में बेसिक शिक्षा बेपटरी हो गई है। सरकारों के लाखों प्रयासों के बावजूद हालात सुधर नहीं पा रहे हैं। वहीं दूसरी ओर उत्तर प्रदेश के जनपद फतेहपुर के एक सरकारी स्कूल के प्रधानाध्यापक ने निजी संसाधनों, मदद और अपनी मेहनत के दम पर स्कूल की तस्वीर ही बदल डाली है। आमतौर पर अभावों का रोना रोने वाले सरकारी स्कूलों से इतर इस स्कूल का कायाकल्प देखकर गांव के बच्चे इस ओर आकर्षित हो रहे हैं।

हम बात कर रहे हैं उप्र के फतेहपुर जिले के अर्जुनपुर गढ़ा गांव स्थित प्राथमिक विद्यालय की। इस स्कूल के प्रधानाध्यापक देवव्रत त्रिपाठी की 22 सालों की ‘तपस्या’ से यह स्कूल अब जनपद का आदर्श स्कूल बन चुका है।

उन्होंने शिक्षा का स्तर ऊंचा उठाने की ठान ली और विद्यालय का कायाकल्प करने का संकल्प लिया। इसे धीरे-धीरे कुछ वर्षो में ही पूरा कर दिखाया। विद्यालय के मुख्यद्वार से प्रवेश करते ही हरा-भरा परिसर और दीवारों पर ज्ञानवर्धक रंगीन चित्रकारी स्वत: ही ध्यान आकर्षित करते हैं। वहीं, शिक्षण कक्ष में सफाई और मेज-कुर्सी नौनिहालों की पढ़ाई में सहायक सिद्ध हो रहे हैं। प्रधानाध्यापक ने पठन-पाठन को बेहतर बनाने के लिए काफी मेहनत कर इसे मॉडल के रूप में प्रस्तुत किया है।

यहां पढ़ने वाले बच्चों के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा व्यवस्था के साथ-साथ बड़ा डाइनिंग हॉल, बड़ा बगीचा, स्वच्छता अभियान को बढ़ावा देने वाला माहौल और ऐसी कई चीजें हैं जो देश के बाकी प्राथमिक स्कूलों के लिए स्वप्न सरीखी हैं। कभी गंभीर अभावों से जूझ रहे इस स्कूल को आदर्श पाठशाला बनाने का ज्यादातर श्रेय यहां के प्रधानाध्यापक देवव्रत त्रिपाठी को जाता है।

जहां एक तरफ लोग किसी स्कूल में सुविधाएं बढ़ाने के लिए सरकार से आस लगाते हैं, वहीं त्रिपाठी ने इसे व्यक्तिगत जिम्मेदारी समझते हुए इस पाठशाला को तमाम ऐसी सुविधाओं से लैस किया, जिनसे कोई स्कूल आदर्श विद्यालय में तब्दील हो सकता है।

प्रधानाध्यापक के तौर पर सेवारत त्रिपाठी ने इस प्राथमिक विद्यालय के प्रति अपने लगाव के बारे में बताया कि 10 सितंबर, 1982 को अर्जुनपुर गढ़ा स्थित प्राथमिक विद्यालय में बतौर सहायक अध्यापक नियुक्ति के बाद उन्होंने इस स्कूल को भी उन्हीं समस्याओं से घिरा पाया, जिनसे अमूमन क्षेत्र का हर प्राथमिक स्कूल ग्रस्त है। सबसे बड़ी समस्या इसका जर्जर भवन और उसमें भी ग्रामीणों का अवैध कब्जा था। उन्होंने सक्षम अधिकारियों के मार्फत प्रयास किए, जिससे स्कूल की चहारदीवारी का निर्माण हुआ और कब्जा खत्म हो सका।

अन्य सरकारी स्कूलों की तरह इस प्राथमिक पाठशाला में भी विद्यार्थियों की संख्या बढ़ाना कोई कम बड़ी चुनौती नहीं थी। त्रिपाठी के मुताबिक, इसके लिए शिक्षा व्यवस्था को मनोवैज्ञानिक तरीके से ढाला गया, ताकि पढ़ाई बच्चों के लिए बोझ न बन सके। इसके अलावा परिसर को कौतूहलपूर्ण बनाने के लिए एक बड़ी फुलवारी तैयार की गई, जिसमें फलदार वृक्ष लगाए गए। इसकी देखभाल वह खुद करते हैं। साथ ही बच्चों को बागवानी से जोड़ने के मकसद से इस बगीचे में कई चीजें उगाई जाती हैं। इससे विद्यालय के प्रति और भी आकर्षण उत्पन्न हुआ और छात्रसंख्या में वृद्धि हुई।

अर्जुनपुर गढ़ा स्कूल के प्रधान प्रतिनिधि धर्मराज यादव के मुताबिक, पिछले कुछ सालों में गांव के प्राथमिक विद्यालय की तस्वीर बदल गई है। पहले इसका भवन जर्जर स्थिति में था, मगर यहां के प्रधानाध्यापक और उनके सहयोगियों की मेहनत और लगन का नतीजा है कि यह विद्यालय आसपास के इलाकों में अलग पहचान रखता है। प्रधानाध्यापक अभी भी उसे अच्छा बनाने का प्रयास कर रहे हैं।

उन्होंने कहा कि पहले इस विद्यालय पर लोगों ने कब्जा कर रखा था। उसे कब्जामुक्त कराने में भी प्रधानाध्यापक त्रिपाठी का अहम योगदान है। पहले जहां, स्कूल में गिने-चुने छात्र ही थे, वहीं अब यह तादाद बढ़ी है। स्कूल में पढ़ाई भी होती है। कुल मिलाकर आस-पास के क्षेत्रों में ऐसा कोई और स्कूल नहीं है।

जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी शिवेंद्र प्रताप सिंह ने बताया, “हमारा प्रयास रहता है कि जनपद स्तर पर न्यूनतम एक मॉडल स्कूल आवश्यक रूप से स्थापित किया जाए, जिससे परिषदीय शिक्षा प्रणाली के प्रति आकर्षण बढ़े। प्रधानाध्यापक देवव्रत त्रिपाठी की स्कूल के प्रति व्यक्तिगत लगन सराहनीय है और यह स्कूल एक आदर्श पेश कर सका है।”

उन्होंने कहा कि “प्रधानाध्यापक के प्रयासों से अर्जुनपुर गढ़ा प्राथमिक पाठशाला की तस्वीर में व्यापक परिवर्तन आया है। निश्चित रूप से जब तक ऐसे शिक्षक सक्रिय रहेंगे, शिक्षा प्रणाली में चामत्कारिक परिवर्तन देखने को मिलेंगे।”

अर्जुनपुर गढ़ा के निवासी करुणा शंकर मिश्र कहते हैं कि यहां की हालत बहुत खराब थी। स्कूल के प्रधानाचार्य ने अपने प्रयासों से बिल्डिंग को सजाया और संवारा है। ऐसा विद्यालय आस-पास के क्षेत्र में मिलना मुश्किल है।

उसी गांव के रामलखन का कहना है कि विद्यालय को सुसज्जित बनाने के लिए प्रधानाध्यापक ने बहुत परिश्रम किया है। रात-रात भर फुलवारी में आज भी पानी सींचते दिखाई देते हैं। कब्जा मुक्त कराने के लिए उनको बहुत पापड़ बेलने पड़े हैं।

विकास की दौड़ में काफी पिछड़े बुंदेलखंड क्षेत्र के गांव अर्जुनपुर गढ़ा में स्थित यह प्राथमिक पाठशाला अपनी कई खूबियों के लिए चर्चित है। यहां बच्चों को दोपहर का भोजन कराने के लिए एक विशाल डायनिंग हॉल बनवाया गया है, जिसमें करीब 200 बच्चे एक साथ बैठकर खाना खा सकते हैं। जिले में इस तरह का डायनिंग हॉल किसी अन्य स्कूल में नहीं है।

विद्यालय में सभी बच्चों को स्वच्छता के लिए प्रेरित किया जाता है। जो बच्चे घर से नहाकर नहीं आते हैं, उन्हें विद्यालय में स्नान करवाने के लिए साबुन और तौलिये के साथ-साथ कंघा, तेल इत्यादि की विशेष व्यवस्था की गई है।

त्रिपाठी ने बताया कि अक्सर पानी की किल्लत से जूझने वाले इस इलाके में पूर्व में, स्कूल के छात्रों और शिक्षकों को कुएं से खींचकर पानी लाना पड़ता था। उन्होंने अपने प्रयासों से विद्यालय में हैंडपम्प लगवाया और सबमर्सिबल मोटर की व्यवस्था की। छह कमरों वाले इस स्कूल की कक्षाओं और फर्श पर टाइल्स भी लगवाए गए हैं। साथ ही कक्षा तीन, चार और पांच के विद्यार्थियों के बैठने के लिए फर्नीचर की व्यवस्था की गई है, जो उन्होंने खुद ही की है।

त्रिपाठी का कहना है कि अपने पिता और गुरुजन की वचनों से प्रेरित होकर उन्होंने हमेशा अपने कार्यस्थल को सर्वश्रेष्ठ बनाने का प्रयास किया। वह चाहते हैं कि जिला स्तर पर आदर्श बनने के बाद उनका प्राथमिक विद्यालय राष्ट्रीय स्तर पर भी प्रसिद्धि हासिल करे।