एक्टिविस्ट विवेक पांडे को दिए गए आरटीआई के जवाब में चिड़ियाघर के अधिकारियों ने कहा कि पिछले तीन सालों में 456 जानवरों की मौत हुई और 10 साल में मिले पैसे का एक हिस्सा ही जानवरों के इलाज पर खर्च किया गया।
आरटीआई के जवाब के मुताबिक, दिल्ली चिड़ियाघर को पिछले 10 साल में सरकार से 180 करोड़ रुपये मिले हैं और सिर्फ 66.29 लाख रुपये जानवरों के इलाज पर खर्च किए गए हैं।
आरटीआई के जवाब से पता चला कि चिड़ियाघर में ज्यादातर जानवरों की मौत सदमे, बुढ़ापा, दर्दनाक आघात आदि के कारण हुई।
साल 2017-18 के दौरान चिड़ियाघर को 41 करोड़ रुपये मिले और सिर्फ 7.94 लाख रुपये जानवरों के इलाज पर खर्च किए गए। 2018-19 में चिड़ियाघर के अधिकारियों को सरकार की ओर से 23.18 करोड़ रुपये और जानवरों के इलाज पर 14.89 लाख रुपये खर्च किए गए थे।
वित्तीय वर्ष 2019-20 के दौरान दिल्ली चिड़ियाघर के वन्य निवासियों के चिकित्सा उपचार पर 23.02 करोड़ रुपये प्राप्त हुए और 10.41 लाख रुपये खर्च किए गए।
कार्यकर्ता पांडेय ने आईएएनएस को बताया, आरटीआई के जवाब से एक बहुत ही दिलचस्प तथ्य सामने आया है। पिछले 10 सालों में दिल्ली चिड़ियाघर को सरकार की ओर से करीब 180 करोड़ रुपए का फंड आवंटित किया गया है, लेकिन इस बजट का एक छोटा सा हिस्सा ही खर्च किया गया है। यह है जांच का विषय है।
पेटा इंडिया की चीफ एडवोकेसी ऑफिसर खुशबू गुप्ता ने आईएएनएस को बताया कि दिल्ली शहर में न तो साफ पानी है और न ही हवा, ऐसे में जानवरों का पालन-पोषण करना बहुत मुश्किल है।
गुप्ता ने कहा,चिड़ियाघर में जानवर सुरक्षित नहीं हैं। पशु कल्याण की कसौटी यह है कि जानवर स्वाभाविक रूप से कैसे रह सकते हैं। जब जानवर जंगल में होते हैं, तो वे खाने-पीने के लिए मीलों पैदल चलते हैं, लेकिन चिड़ियाघर में यह सब संभव नहीं है। जिसके कारण उन्हें शारीरिक और मानसिक तनाव है। यही उनकी मृत्यु का कारण बनता है।
उसने उल्लेख किया कि दिल्ली चिड़ियाघर में एक युवा शेर की मौत के बावजूद उन्हें तीन नए शेर लाने की अनुमति मिली है।
उन्होंने कहा,पेटा इंडिया ने विनम्रतापूर्वक केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण से दिल्ली चिड़ियाघर को तुरंत बंद करने और इस चिड़ियाघर में किसी भी नए जानवर के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने का अनुरोध किया है।
–आईएएनएस
एनपी/आरजेएस