समाधान की बाट जोह रहा अयोध्या विवाद

 नई दिल्ली, 18 जुलाई (आईएएनएस)| राजनीतिक और सांप्रदायिक रूप से सबसे संवेदनशील मुद्दों में से एक अयोध्या विवाद का पिछले 69 वर्षो से समाधान नहीं हो सका है।

 छह दिसंबर 1992 को विवादित ढांचा गिराए जाने के बाद यह मुद्दा और जटिल हो गया। कानूनी तौर-तरीकों से इस विवाद का समाधान निकालने के लिए कई कोशिशें हुई हैं, जिसमें सभी पक्ष अदालत के फैसले को स्वीकार करने को तैयार हैं।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 2010 में कहा था कि अयोध्या में 22.7 एकड़ विवादित भूमि को सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला के बीच बराबर विभाजित किया जाएगा।

इसके बाद, सर्वोच्च न्यायालय में 14 अपीलें दायर की गई हैं। इस मामले ने हाल ही में कानूनी रूप से रफ्तार पकड़ी है।

शीर्ष अदालत ने आम सहमति पर पहुंचने का प्रयास करते हुए हाल ही में आठ मार्च को सभी पक्षों से बात करने के लिए तीन सदस्यीय मध्यस्थता पैनल नियुक्त किया था।

सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली इस समिति को मामले में जल्द सुनवाई के लिए गुरुवार को तमाम दलीलों की पृष्ठभूमि पर आधारित स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने को कहा है।

सौहार्दपूर्ण समझौते के लिए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एफ. एम. कलीफुल्ला की अध्यक्षता में पैनल बनाया गया है। इस पैनल के अन्य दो सदस्य आध्यात्मिक गुरु एवं आर्ट ऑफ लिविंग फाउंडेशन के संस्थापक श्रीश्री रविशंकर और वरिष्ठ अधिवक्ता श्रीराम पंचू हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने पैनल को आठ सप्ताह के अंदर मध्यस्थता प्रक्रिया पूरी करने के लिए कहा है। अदालत ने कार्यवाही पर गोपनीयता बनाए रखने पर भी जोर दिया।

हिंदू पक्ष की ओर से कहा जा रहा है कि मध्यस्थता प्रक्रिया सकारात्मक दिशा में आगे नहीं बढ़ रही है, जबकि मुस्लिम पक्ष की ओर से इस कार्यवाही पर कोई बयान नहीं आया है। अदालत ने हालांकि मध्यस्थता समिति को अभी तक के परामर्शो पर अपनी रिपोर्ट देने के लिए कहा है।