विचाराधीन है सलीम की पुनर्विचार याचिका, लगाएंगे शबनम की फांसी टालने की गुहार

मेरठ. ऑनलाइन टीम  यूपी में अमरोहा जिले के बावनखेड़ी नरसंहार के दोनों दोषी सलीम और शबनम अब करीब-करीब फांसी के फंदे के करीब हैं। इसमें शबनम के नाम कभी भी डेथ वारंट जारी हो सकता है, पर सलीम की पुनर्विचार याचिका अभी विचाराधीन है। कानून के जानकार मानते हैं कि इसका आधार लेकर शबनम की फांसी को टाला जा सकता है। कारण एक ही अपराध में समान रूप से शामिल दो दोषियों की सजा में फर्क नहीं किया जा सकता।

इस बीच, एक पेचीदगी यह भी आई है कि शबनम का 12 साल का बेटा राष्ट्रपति और राज्यपाल से गुहार लगा चुका है। ऐसे में माना जा रहा है कि शबनम हाईकोर्ट की शरण ले सकती है।

शबनम के वकील शमशेर सैफी के मुताबिक, शबनम और सलीम की फाइलें सेशन कोर्ट से ही साथ चल रही हैं। अदालत ने दोनों को साथ फांसी की सजा सुनाई थी। हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में भी दोनों की फाइलें साथ चलीं। राष्ट्रपति ने भी दोनों की दया याचिका साथ खारिज की थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अभी सिर्फ शबनम की पुनर्विचार याचिका में याचिका खारिज की है, सलीम की विचाराधीन है। सलीम की पुनर्विचार याचिका विचाराधीन रहते शबनम डेथ वारंट जारी होने पर हाईकोर्ट जा सकती हैं, क्योंकि दोनों को एक जुर्म में साथ फांसी की सजा सुनाई गई है। ऐसे में सजा भी समान रूप से मिलनी चाहिए।

मालूम हो कि शबनम ने 14 अप्रैल, 2008 की रात अपने प्रेमी सलीम के साथ मिलकर माता-पिता और मासूम भतीजे समेत परिवार के सात लोगों का कुल्हाड़ी से गला काटकर मौत की नींद सुला दिया था। इसी गुनाह में शबनम को फांसी की सजा सुनाई गई है। शबनम और सलीम के केस में 100 तारीखों तक बहस हुई थी। इसमें 29 गवाहों ने शबनम सलीम के खिलाफ गवाह दिया है। इस मामले की सुनवाई 27 महीनों तक चली थी। इसके बाद 14 जुलाई 2010 शबनम और सलीम दोषी करार दिए गए। 15 जुलाई 2010 को दोनों को सुनाई फांसी की सजा गई। इस केस में गवाहों से 649 सवाल किये गये थे। 160 पेज में सजा सुनाई गयी है। शबनम सलीम के केस की सुनवाई तीन जिला जजों के कार्यकाल में पूरी हुई। कहा जाता है कि जिला जज एसएए हुसैनी ने 29 सेंकेड में फांसी की सजा सुनाई थी।