वर्ल्ड स्पैरो डे विशेष: अंधविश्वास की भेंट चढ़ रही गौरैया?

एक समय था जब सुबह गौरैया की चहचहाहट से होती थी, लेकिन अब ये नन्ही चिड़िया हमारे आसपड़ोस से ग़ायब होती जा रही है। इसकी वजह है तेज़ी से फैलता कंक्रीट का जंगल और ख़त्म होते पेड़। पेड़ कम हो रहे हैं, तो उन पर निर्भर छोटे-छोटे पक्षियों की संख्या भी घट रही है। इसी के चलते गौरैया भी भारत के सबसे संकटग्रस्त पक्षियों में शुमार हो गई है। गौरैया के कम होने की एक बड़ी वजह अन्धविश्वास भी है। जिस तरह यह भावना प्रचुर मात्रा में जनमानस के मस्तिष्क में बैठ ही दी गई है कि बाघ के अंग विशेष से निर्मित दवाईयां यौन शक्ति बढ़ाने में कारगर हैं। उसी तरह गौरैया को भी कामोत्तेजक दवा के रूप में बेचा जा रहा है. देशभर में पशु-पक्षियों का अवैध व्यापार बड़ी तेजी से फल-फूल रहा है, मुंबई का क्रॉफर्ड बाजार इसका सबसे बड़ा केंद्र है। सबकुछ जानते हुए भी पुलिस इन मामले में कोई कार्रवाई नहीं करती क्योंकि उसे ऐसी जगहों से खामोश बैठने के लिए बहुत कुछ मिल जाता है। मुंबई का कोई भी पशु कल्याण संगठन उस बाजार में छापा मारने का साहस नहीं करता।

एक खुराक पर कई कुर्बान

एक खुराक पर कई कुर्बान
क्रॉफर्ड बाजार में हर दिन औसतन करीब 50 से 60,000 पक्षी खरीदे-बेचे जाते हैं। कामोत्तेजना बढ़ाने की दवा का व्यापार करने वालों के लिए गौरेया सबसे सरल टारगेट रही है। गौरेया को पकड़ने के लिए उन्हें जंगलों में डेरे नहीं डालने पड़ते, शहरों में घूम-घूमकर आसानी से उन्हें पकड़ा जाता है। जानकारों के अनुसार, इस पक्षी की मांग में हाल में काफी वृध्दि हुई है। दरअसल, कुछ हकीम समय-समय पर यह दावा करते रहते हैं कि उन्होंने गौरेया के मांस से एक ऐसी दवा तैयार की है, जो कामोत्तेजक का काम करती है, इसलिए इसकी मांग अप्रत्याशित तौर से बढ़ी है। ऐसा नहीं है कि नीम-हकीमों के इस अन्धविश्वास का केवल अनपढ़ लोग ही हिस्सा बनते हैं काफी तादाद में अमीर उद्योगपति तथा फिल्मी सितारे भी ऐसी दवाओं के इस्तेमाल में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। इन पक्षियों को नाइलॉन के जाल के जरिये पकड़ा जाता है। चूंकि गौरैया छोटी होती है, इसलिए कामोत्तेजक दवा की एक खुराक बनाने के लिए कई गौरैया की कुर्बानी दी जाती है।

जारी है कोशिश

जारी है कोशिश
नासिक के मोहम्मद दिलावर काफी समय से महाराष्ट्र में गौरैया को बचाने के लिए अभियान चलाए हुए हैं, लेकिन लोगों के अन्धविश्वास पर लगाम लगाना उनके लिए भी मुश्किल है। मोहम्मद दिलावर पर्यावरण विज्ञानी हैं और लम्बे समय से बॉम्बे नैचुरल हिस्ट्री सोसायटी से जुड़े हुए हैं। दिलावर ने साल 2008 में गौरैया को बचाने की मुहिम शुरू की। वे नासिक में रहते हैं लेकिन गौरेया को बचाने की उनकी मुहिम अब 50 देशों तक पहुंच गई है। हालांकि यह मुहीम तब तक कारगर नहीं हो सकती, जब तक कि लोग खुद अन्धविश्वास और विश्वास के बीच का फर्क नहीं समझ लेते। लिहाजा यह ज़रूरी है कि हम अन्धविश्वास का पर्दा अपनी आंखों से हटाकर यह समझें कि कोई भी पशु-पक्षी हमें मर्द नहीं बनाता। गौरैया को हमारे प्यार और सहयोग की ज़रूरत है, वरना आने वाले दिनों में हम केवल गूगल पर ही इसे निहार पाएंगे।