बासु ने आईएएनएस को बताया, रचनात्मकता की आजादी और उसके दुरुपयोग के बीच एक बहुत पतली रेखा है। मैं यहां ओटीटी की भी बात कर रहा हूं। अनोखी कहानियों का जिक्र करते वक्त फिल्मकारों को बोलने की स्वतंत्रता का ध्यान बेहतरी से रखना चाहिए।
अनुराग बासु की फिल्म लूडो को अभी कुछ ही महीनों पहले ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज किया गया था और अब जल्द ही इसे टेलीविजन पर प्रसारित किया जाएगा।
उन्होंने इस पर कहा, बड़े पर्दे पर भी कई फिल्मकारों द्वारा साहसिक विषयों पर काम किया गया है। मेरी फिल्म लूडो भी कई ऐसे बोल्ड विषयों पर आधारित है, जिसे शुरुआत में बड़े पर्दे को ध्यान में रखकर ही बनाया गया था।
बर्फी (2012), लाइफ इन ए मेट्रो (2007), गैंगस्टर (2006) जैसी फिल्में बना चुके बासु इस बात को लेकर निश्चित हैं कि लॉकडाउन के बाद अब चूंकि थिएटर्स वगैरह खुल गए हैं, ऐसे में लोग इनका जमकर लुफ्त उठाएंगे।
उन्होंने कहा, सिनेमा कम्युनिटी वॉचिंग का अनुभव है। मैं निश्चित हूं कि एक बार चीजें पटरी पर आ जाएंगी, तो लोग सिनेमाघरों का रूख जरूर करेंगे। हमें बस एक ऐसी फिल्म चाहिए, जो इतनी हलचल पैदा कर दें कि लोग सिनेमाघरों की ओर खींचे चले आए। विजय स्टारर मास्टर की रिलीज के साथ साउथ में इसकी शुरुआत हो चुकी है और अब बॉलीवुड में भी इसकी झलक देखने को मिलेगी। एक बड़ी रिलीज के साथ ही चीजें बदल जाएंगी।
लूडो को 28 फरवरी सोनी मैक्स पर प्रसारित किया जाएगा।
–आईएएनएस
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