मैंने सच बोला, तो जेल भेज दिया

हरजीत मसीह ने सरकार पर उठाए सवाल

नई दिल्ली: इराक के मोसुल में अगवा किए गए 40 भारतीयों में से एकमात्र हरजीत मसीह जिंदा हैं। वह किसी तरह खुद को बचाने में कामयाब रहे। उन्होंने काफी पहले ही बता दिया था कि बाकी भारतीयों को आईएसआई ने मौत के घात उतार दिया है, लेकिन मोदी सरकार ने उनकी बातों को अनसुना कर दिया और अब विदेशमंत्री सुषमा स्वराज ने खुद मसीह के दावे पर मुहर लगाई। हालांकि उन्होंने मसीह की कहानी को सही मानने से अब भी इंकार कर दिया। 27 साल के हरजीत मसीह सरकार के इस रवैये से काफी आहत हैं। मसीह को इस बात की नाराजगी भी है कि सरकार ने उनकी भारतीयों को अगवा करने और मारे जाने की बात पर क्यों नहीं यकीन किया। आईएस के चंगुल से बचकर निकले हरजीत का कहना है कि उन्होंने 11 जून 2014 को ही सरकार को भारतीयों के अगवा करने और मारे जाने की बात बताई थी।

झूठे आश्वासन दिए
मसीह का दावा है कि आईएस के चंगुल से बचकर निकलने वालों में वह अकेले शख्स हैं और उनके सामने ही 39 और मजदूरों की हत्या कर दी गई थी। मसीह बांग्लादेश के उन 51 और भारत के 40 नागरिकों में से एक हैं, जिन्हें इराक के मोसुल शहर में आतंकी संगठन आईएस ने अगवा कर लिया था। आतंकियों ने बांग्लादेशियों और भारतीयों को 2 अलग ग्रुप में बांट दिया और बांग्लादेशियों को जाने की अनुमति दे दी। ये सभी मजदूर थे और मोसुल की एक टैक्सटाइल फैक्ट्री में काम करते थे। मसीह ने सरकार पर आरोप लगाया कि उसे पूछताछ के लिए हिरासत में रखा गया और 39 अन्य परिवारों को झूठे आश्वासन दिए, जबकि उसने उनकी मौत की खबर सरकार को दे दी थी। मसीह का कहना है, ‘मैंने सरकार को 39 लोगों के मारे जाने की बात बताई थी, इसके बाद भी मुझ पर विश्वास नहीं किया गया। सरकार ने मारे गए 39 परिवार के लोगों को झूठी उम्मीद दी।’

कौन करेगा भरपाई
मसीह इस वक्त गुरदासपुर में बतौर मजदूर काम कर रहे हैं। मसीह का कहना है, ‘मुझे 6 महीने तक जेल में रखा गया जबकि मैंने सरकार को सच बताया था, लेकिन केंद्र सरकार ने मुझ पर भरोसा नहीं किया। इराक से बचकर आने के बाद से मैं सच बोल रहा हूं, लेकिन किसी ने मुझ पर यकीन नहीं किया। 6 महीने मैं जेल में रहा, इसकी भरपाई कौन करेगा?’

ऐसे बची जान
हरजीत के मुताबिक, ‘आतंकियों ने 40 भारतीयों को अगवा किया और सब पर गोली चला दी। गोली मेरे पैर को छूकर निकली और मैं आतंकियों के जाने के बाद वहां से भाग निकला और फैक्ट्री में बांग्लादेशी मजदूरों के पास पहुंच गया। उन्होंने मुझे अपने कपड़े दिए और वहां से मैं अली बनकर उनके साथ भागा। पासपोर्ट के लिए पूछने पर उन्होंने कह दिया कि पासपोर्ट खो गया है। मुझे नहीं पता मैं एयरबेस तक कैसे पहुंचा, लेकिन वहां किसी बांग्लादेशी के फोन पर मुझे फोन आया और मेरी बात सुषमा स्वराज जी से हुई।