मानवाधिकार मुद्दों पर सहयोग के लिए जेजीयू, सीएचआरआई में समझौता

नई दिल्ली, 22 जून (आईएएनएस)| ओ. पी. जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी (जेजीयू) ने मानवाधिकार के मुद्दों को लेकर राष्ट्रमंडल मानवाधिकार पहल (सीएचआरआई) के साथ सहयोग के लिए एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए हैं। जेजीयू इस समझौते के तहत उभरते हुए शोधार्थियों, विद्यार्थियों और स्टाफ के लिए इंटर्नशिप, फेलोशिप, रिसर्च मॉबिलिटी कार्यक्रम, संयुक्त शोध, संयुक्त कार्यशालाएं, सहयोगपूर्ण ग्रीष्मकालीन/शीतकालीन पाठ्यक्रमों और सहयोगपूर्ण कार्यकारी शिक्षा पाठ्यक्रमों के जरिए मानवाधिकार के मुद्दों पर सहयोग करेगा।

सीएचआरआई के अंतर्राष्ट्रीय निदेशक संजय हजारिका के साथ शुक्रवार को एमओयू पर हस्ताक्षर करने के बाद जेजीयू के मानवाधिकार अध्ययन केंद्र (सीएचआरएस) के कार्यकारी निदेशक वाई. एस. आर. मूर्ति ने कहा, “हम अपने विद्यार्थियों और शोधार्थियों के लिए मानवाधिकार के क्षेत्र में व्यापक अवसर पैदा करने के लिए सीएचआरआई के साथ साझेदारी करके प्रसन्न हैं। एमओयू पर हस्ताक्षर कारावास, न्याय सुलभता, सूचना का अधिकार व अन्य क्षेत्रों में मौजूदा सहयोग की एक तार्किक परिणति है। हमें उम्मीद है कि यह परस्पर लाभकारी साबित होगा।”

हजारिका ने कहा कि साझेदारी से शैक्षणिक समुदाय और मानवाधिकारों का हनन करने वालों के बीच अधिक करीबी संबंध बनाना संभव होगा और इससे अहम क्षेत्र में छात्रवृत्ति और शोध को बढ़ावा मिलेगा। उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र की प्रासंगिकता बढ़ रही है, लेकिन दुनियाभर में यह कॉरपोरेट समेत सरकारी और गैर-सरकारी कारकों की ओर से काफी दबाव में है।

इस मौके पर सीएचआरआई द्वारा ‘इजीयर सेड दैन डन’ (ईएसटीडी) रिपोर्ट जारी की गई, जिसमें संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) में राष्ट्रमंडल के सदस्य देशों के प्रदर्शन पर प्रकाश डाला गया है।

भारत में पहली बार यह रिपोर्ट जारी की गई, हालांकि सीएचआरआई ने ईएसटीडी की 2007 की पहली रिपोर्ट के बाद से यूएनएचआरसी में राष्ट्रमंडल देशों के प्रदर्शन का जिक्र किया है।

सीएचआरआई कार्यकारिणी समिति के अध्यक्ष वजाहत हबीबुल्ला ने कहा, “यह रिपोर्ट बस एक प्रकार का रिमाइंडर है, इसलिए यह महत्वपूर्ण है। महत्वपूर्ण बात यह कि इसे दस्तावेज के रूप में तैयार किया गया और रिकॉर्ड में लाया गया है, लेकिन ज्यादा अहम बात यह है कि मानवाधिकार से संबद्ध लोग जानते हैं कि यह दरअसल उन राष्ट्रमंडल देशों की प्रतिबद्धता है, जो खुद को उत्तरदायी ठहरा सकते हैं।”