मप्र में सियासी रंग से दूर ‘पानी की जंग’

 भोपाल, 25 जून (आईएएनएस)| मध्य प्रदेश में गहराए जल संकट पर सत्ता और विपक्ष बगैर किसी राजनीतिक पैतरेबाजी के अपने-अपने स्तर पर जल संरक्षण के अभियान में जुट गए हैं।

 सरकार जहां पानी के अधिकार पर मंथन कर रही है, वहीं दूसरी ओर विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी ने जल संरचनाओं के संरक्षण का अभियान छेड़ दिया है। वर्तमान दौर में राज्य का लगभग हर हिस्सा पानी के संकट से जूझ रहा है। कई इलाके तो ऐसे हैं, जहां लोगों को पानी हासिल करने के लिए कई-कई किलोमीटर का रास्ता तय करना होता है। कुएं, तालाब से लेकर अन्य जलस्त्रोत सूख चुके हैं। कई इलाकों में तो पानी खरीदने की स्थिति है।

राज्य में जल संकट का अंदाजा सरकारी आंकड़ों से ही लगाया जा सकता है। नगरीय प्रशासन विभाग के अनुसार, 32 नगरीय निकायों में टैंकरों के जरिए पानी पहुंचाया जा रहा है। इसके अलावा 96 नगरीय क्षेत्रों में एक दिन के अंतराल पर, 28 में दो दिन और एक नगरीय निकाय में तीन दिन के अंतराल पर जलापूíत हो रही है। प्रदेश के कुल 378 नगरीय निकायों में से 258 में प्रतिदिन जलापूíत की जा रही है।

मुख्यमंत्री कमलनाथ ने राज्य में पानी का अधिकार कानून बनाने का ऐलान किया है। इस कानून के जरिए हर परिवार व व्यक्ति को तय मात्रा में प्रतिदिन पानी उपलब्ध कराने का प्रावधान किया जाने वाला है। यह कानून कैसा हो, उसे जनता की जरूरतों के मुताबिक कैसे तैयार किया जाए, इसी के लिए सोमवार को राजधानी में जल विशेषज्ञों की कार्यशाला आयोजित की गई।

राज्य के लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी मंत्री सुखदेव पांसे ने मंगलवार को कहा है, “राजधानी में जल विशेषज्ञों की कार्यशाला में जल संरक्षण, संवर्धन को लेकर जो सुझाव आए हैं, उनका सरकार अध्ययन करने के बाद प्रदेश के लोगों से संवाद कर कानून को अमल में लाएगी। इस कानून के जरिए जहां लोगों को जरूरत का पानी आसानी से मिलेगा, वहीं जल स्त्रोतों को भी साल भर पानीदार बनाए रखा जा सकेगा।”

इस बीच, विपक्षी दल भाजपा ने भी जलस्त्रोतों के संरक्षण के लिए अभियान छेड़ दिया है। पिछले 14 जून को जबलपुर में जल विशेषज्ञों का सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसमें जल विशेषज्ञों ने विभिन्न नदियों की स्थिति पर चर्चा कर अपने सुझाव दिए थे।

इसके अलावा भाजपा ने सोमवार को जबलपुर में ही जल रक्षा अभियान की शुरुआत की। भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष राकेश सिंह का कहना है, “राजनीति के अलावा हमें अपने सामाजिक दायित्वों के लिए न सिर्फ जागरूक होना पड़ेगा, बल्कि आगे बढ़कर काम करना पड़ेगा। अगर आगे आने वाली पीढ़ियों को सुरक्षित बनाना है तो हर कीमत पर पानी की रक्षा करनी पड़ेगी।”

आदिवासियों के बीच काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता मनीष राजपूत कहते हैं, “पानी की समस्या किसी जाति, धर्म, वर्ग या राजनीतिक दल से जुड़े लोगों की नहीं है, इस समस्या ने तो सभी को अपनी जद में ले रखा है। लिहाजा पानी की समस्या के निराकरण के लिए सभी को मिलकर काम करने की जरूरत है। राज्य में सत्ता और विपक्षी दल ने अपने-अपने स्तर पर काम शुरू किया, जो आने वाले समय में प्रदेशवासियों के लिए सुखदायी हो सकते हैं।”