भोपाल की चुनावी फिजा पर ‘धर्म’ का साया

 भोपाल, 9 मई (आईएएनएस)| मध्य प्रदेश की राजधानी का चुनावी दंगल राज्य में सत्तारूढ़ कांग्रेस और केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा, दोनों के लिए ‘प्रतिष्ठा बचाने की लड़ाई’ बन गया है। दोनों पार्टियां धर्म को मुख्य मुद्दा बनाती दिख रही हैं।

 भाजपा ने जहां हिंदू धर्म की ध्वजवाहक मानी जानेवाली साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को आगे कर कांग्रेस के सामने चुनौती पेश कर दी है, तो कांग्रेस भी मजबूरन धर्म का सहारा लेती दिख रही है।

 

भाजपा, कांग्रेस उम्मीदवार दिग्विजय सिंह को ‘हिंदू विरोधी’ बताने की मुहिम छेड़े हुई है। वह प्रज्ञा को हिंदू होने के कारण कांग्रेस के इशारे पर प्रताड़ित किए जाने की बात फैलाने में लगी है, तो दिग्विजय भी अपने को ‘हिंदू समर्थक’ बताने में लगे हैं। उनका मंदिर-मंदिर जाने का उनका सिलसिला जारी है। कुछ साधु-संतों ने भी उनके लिए प्रचार शुरू कर दिया है। इस तरह ‘धर्म’ चुनावी मुकाबले का केंद्रबिंदु बन गया है।

भोपाल संसदीय क्षेत्र में भाजपा की रैलियों में जहां भगवा झंडे और सिर में साफा बांधे लोग नजर आते हैं तो सीधे तौर पर दिग्विजय पर हिंदुओं को आतंकवाद से जोड़ने का आरोप लगाया जा रहा है। भाजपा उम्मीदवार के समर्थन में साधु-संतों की टोलियां हर तरफ सक्रिय हो चली हैं। प्रज्ञा ठाकुर से लेकर पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तक दिग्विजय पर सीधा हमला बोल रहे हैं।

शिवराज का कहना है, “यह साधारण चुनाव नहीं है, भोपाल के लोगों को हिंदू आतंकवाद और भगवा आतंकवाद जैसे शब्दों को गढ़ने वालों को सबक सिखाना है। वास्तव में यह चुनाव देशद्रोहियों का साथ देने वालों को हराने का चुनाव है।”

कांग्रेस भी प्रज्ञा ठाकुर को घेरने के लिए साधु-संतों का सहारा ले रही है। शिवराज राज में राज्यमंत्री का दर्जा पाने वाले कंप्यूटर बाबा इन दिनों अनेक साधु-संतों के साथ राजधानी में सक्रिय हैं। उन्होंने हठयोग किया, रोड शो किया और लोगों से दिग्विजय को जिताने की अपील की। कंप्यूटर बाबा लोगों से प्रज्ञा ठाकुर के आतंकवाद के आरोपों से घिरे होने की बात कहते हैं और उनके ‘साध्वी’ होने पर सवाल उठाते हैं।

पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह हालांकि भाजपा के आरोपों का सीधे तौर पर जवाब देने से बच रहे हैं। उनका कहना है, “मेरे लिए मानवता सवरेपरि है, कुछ लोगों ने धर्म के नाम पर उन्माद फैलाया है। इसलिए सभी को मिलकर एकजुटता के लिए अभियान चलाना चाहिए, क्योंकि भारत माता के सभी लालों ने काफी मेहनत कर इस देश को बनाया है।”

आलम यह है कि दिग्विजय के समर्थन में उतरे साधु-संत कांग्रेस के झंडे के साथ भगवा झंडे का भी उपयोग कर रहे हैं। इस पर प्रश्न उठाए जाने पर दिग्विजय सिंह प्रतिप्रश्न करते हैं, “भगवा पर किसी का एकाधिकार है क्या?”

राजनीतिक विश्लेषक सॉजी थामस कहते हैं, “भोपाल में भाजपा और कांग्रेस दोनों का लक्ष्य चुनाव जीतना है। नेता जानते हैं कि वास्तविक मुद्दों से मतदाताओं को भटकाकर हिंदुत्व का नारा लगाकर, सांप्रदायिकता को बढ़ावा देकर ही बंटवारे की राजनीति की जा सकती है और इसी आधार पर वोट की फसल काटी जा सकती है।”

उन्होंने कहा, “यह बात दोनों दल समझ गए हैं, और यही कारण है कि चुनाव भगवा व हिंदुत्व पर आकर सिमट गया है। चाहे जो भी जीते, मगर बंटवारे की राजनीति से राजधानी की सौहार्दपूर्ण फिजा को तो नुकसान हो ही जाएगा।”

अब जरा पिछले दिनों आए नेताओं के बयानों पर गौर करें। भाजपा द्वारा उम्मीदवार बनाए जाते ही प्रज्ञा ठाकुर ने जो बयान दिया, वह समूचे देश में चर्चा का केंद्र बन गया। उन्होंने मुंबई एटीएस प्रमुख रहे हेमंत करकरे की 26/11 के आतंवादी हमले में शहादत पर कहा था, “करकरे को तो मेरे श्राप के कारण ऊपर जाना पड़ा।” उनके इस बयान की निंदा करने वालोंने इसे एक कर्तव्यनिष्ठ शहीद का अपमान बताया। मामला तूल पकड़ने पर प्रज्ञा ने बाद में माफी मांग ली।

इसके बाद प्रज्ञा ने बाबरी मजिस्द ढहाए जाने को गर्व की बात कहा। अदालत में विचाराधीन इस मामले पर भी देशभर में तीखी प्रतिक्रया हुई।

इस बीच दिग्विजय के समर्थन में प्रचार करने आए मशहूर गीतकार जावेद अख्तर, माकपा नेता सीताराम येचुरी और स्वामी अग्निवेश ने नई बहस को जन्म दिया। अख्तर ने बुर्का व घूंघट, दोनों पर रोक की पैरवी की। येचुरी ने हिंदू शासकों को हिंसक बताया। भाजपा ने इसका प्रतिकार किया और दोनों ओर से आए बयान इस संसदीय चुनाव को सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की ओर ले गए।

कांग्रेस के मीडिया विभाग के उपाध्यक्ष भूपेंद्र गुप्ता कहते हैं, “चाहे मशहूर गीतकार जावेद अख्तर हों या माकपा महासचिव सीताराम येचुरी, वे दोनों कांग्रेस के प्रतिनिधि तो हैं नहीं। दोनों बुद्घिजीवी हैं। साथ ही उन्होंने ऐसी कोई बात नहीं कही जो किसी धर्म, जाति के खिलाफ हो, मगर कुछ लोग यहां की फिजा को बिगाड़ने की साजिश कर रहे हैं और उनके बयानों को गलत तरीके से प्रचारित किया जा रहा है। मगर भोपाल में उन लोगों के मंसूबे पूरे नहीं होने वाले।”

भाजपा के मुख्य प्रवक्ता डॉ. दीपक विजयवर्गीय का कहना है, “सीताराम येचुरी हों या जावेद अख्तर, दोनों ही विभाजनकारी ताकतों का हिस्सा हैं। वे देश की संस्कृति को प्रभावित करना चाहते हैं, इसीलिए इस तरह के बयान दे रहे हैं। वे विदेशी विचारों से प्रभावित हैं और देश का माहौल बिगाड़ना चाहते हैं।”

भोपाल के चुनावी रंग की तस्वीर ही अब बदल चली है। यहां चुनाव समस्याओं, ज्वलंत मुद्दों की बजाय भगवा और हिंदुत्व की तरफ मुड़ चला है। कांग्रेस जहां साधु-संतों के सहारे जीत की राह बनाने में लग गई है तो भाजपा ने हर तरफ भगवा रंग से शहर को पाटने की मुहिम तेज कर दी है। भाजपा के हर आयोजन में पुरुष भगवा साफा और गले में दुशाला डाले व महिलाएं भगवा रंग की साड़ी पहने नजर आ जाती हैं।

भोपाल संसदीय सीट पर वर्ष 1984 के बाद से भाजपा का कब्जा रहा है। इस संसदीय क्षेत्र में अब तक हुए 16 चुनावों में कांग्रेस को छह बार ही जीत हासिल हुई है।

भोपाल में 12 मई को मतदान होने वाला है। इस संसदीय क्षेत्र में साढ़े 19 लाख मतदाता हैं, जिनमें चार लाख मुस्लिम, साढ़े तीन लाख ब्राह्मण, साढ़े चार लाख पिछड़ा वर्ग, दो लाख कायस्थ और सवा लाख क्षत्रिय वर्ग से हैं।