भारत में काम करने वाले हर 10 में 6 बच्चे खेतों में काम करते हैं : क्राई

 नई दिल्ली, 12 जून (आईएएनएस)| भारत में बाल मजदूरी करने वाले ज्यादातर बच्चे किसी फैक्टरी या वर्कशॉप में काम नहीं करते। वे शहरी क्षेत्रों में घरेलू नौकर या गलियों में सामान बेचने का काम भी नहीं करते हैं।

  ज्यादातर बच्चे खेतों में काम करते हैं, और वे फसलों की बुवाई, कटाई, फसलों पर कीटनाशक छिड़कना, खाद डालना, पशुओं और पौधों की देखभल करना जैसे काम करते हैं।

यह जानकारी बच्चों के लिए काम करने वाली संस्था क्राई ने अंतर्राष्ट्रीय बाल श्रम निषेध दिवस पर जारी एक बयान में दी है।

क्राई ने 2016 में जारी 2011 की जनगणना का विश्लेषण किया है, जिसके अनुसार, “18 वर्ष से कम उम्र के 62.5 फीसदी बच्चे खेती या इससे जुड़े अन्य व्यवसायों में काम करते हैं। काम करने वाले 4.03 करोड़ बच्चों और किशोरों में से 2.52 करोड़ बच्चे कृषि क्षेत्र में काम करते हैं।”

हाल ही में अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, भारत में लगभग 15.20 करोड़ बच्चे बाल मजदूरी करते हैं और मजदूरी करने वाले हर 10 में से सात बच्चे खेती का काम करते हैं। भारत के मौजूदा रुझानों से भी कुछ ऐसी ही तस्वीर सामने आई है। भारत में 60 फीसदी से अधिक बच्चे खेती या इससे संबंधित अन्य गतिविधियों में काम करते हैं। अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार खेती दुनिया भर में दूसरा सबसे खतरनाक व्यवसाय है।

क्राई के अनुसार, “भारत के कुछ राज्यों में हालांकि ये आंकड़े भारतीय औसत की तुलना में अधिक हैं। हिमाचल प्रदेश में खेती करने वाले बच्चों की संख्या बहुत अधिक 86.33 फीसदी है। वहीं छत्तीसगढ़ और नागालैण्ड में यह क्रमश: 85.09 फीसदी एवं 80.14 फीसदी है। बड़े राज्यों में मध्यप्रदेश में यह संख्या 78.36 फीसदी, राजस्थान में 74.69 फीसदी, बिहार में 72.35 फीसदी, ओडिशा में 69 फीसदी और असम में 62.42 फीसदी है।”

कुल मिलाकर भारत में 5-19 वर्ष उम्र के 4.03 करोड़ बच्चे और किशोर काम करते हैं। इनमें से 62 फीसदी लड़के और 38 फीसदी लड़कियां हैं।

क्राई के विश्लेषण से पता चलता है कि खेतों में मजदूरी करने वाले ज्यादातर बच्चे पढ़ाई नहीं कर पाते। 5-19 वर्ष के 4.03 करोड़ काम करने वाले बच्चों और किशोरों में से मात्र 99 लाख बच्चे ही स्कूल जा पाते हैं। यानी काम करने वाले 24.5 फीसदी बच्चे ही स्कूल जाते हैं। आसान शब्दों में कहें तो काम करने वाले हर चार में तीन बच्चों से उनकी शिक्षा का अधिकार छीन लिया जाता है।

क्राई के अनुसार, बच्चों के काम और शिक्षा के बीच संतुलन बनाने में कई बड़ी चुनौतियां हैं। 2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार शिक्षा के अधिकार के प्रावधान के बावजूद खेतों में मजदूरी करने वाले बहुत कम बच्चे ही अपनी पढ़ाई जारी रख पाते हैं।

क्राई की पॉलिसी एडवोकेसी एंड रिसर्च की निदेशक, प्रीति महारा ने कहा, “बाल मजदूरी के कानूनों के अनुसार 14 साल से कम उम्र के बच्चे स्कूल के बाद ही अपने परिवार के कारोबार में मदद कर सकते हैं।”

महारा ने कहा, “पिछले चार दशकों के अनुभव बताते हैं कि हमारे देश में खेती का ज्यादातर काम ऐसी परिस्थितियों में किया जाता है, जब काम और जीवन के बीच विशेष सीमा नहीं होती। खेतों में काम करने वाले बच्चे खतरनाक कीटनाशकों तथा इनकी वजह से प्रदूषित पानी एवं भोजन के संपर्क में रहते हैं। खेतों में लम्बे समय तक काम करने के दौरान बच्चों को कम उम्र में बहुत ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है।”

महारा ने आगे कहा, “बच्चे अक्सर अपने माता-पिता की मदद के लिए काम करते हैं, क्योंकि उनके परिवार की आय पर्याप्त नहीं होती। बाजार में सस्ते श्रम की मांग के चलते भी बच्चों को काम के लिए मजबूर किया जाता है। लम्बे समय तक काम करने के कारण वे स्कूल नहीं जा पाते, इस तरह वे शिक्षा के अधिकार से वंचित रह जाते हैं। कहीं न कहीं उन्हें खेल और मनोरंजक गतिविधियों से भी समझौता करना पड़ता है।”

महारा ने कहा, “इस समस्या का समाधान तभी किया जा सकता है, जब बच्चों को स्कूल भेजा जाए, न कि खेतों में। वंचित समुदाय के बच्चों को गुणवत्तापूर्ण स्कूली शिक्षा देना जरूरी है, इसके लिए अध्यापकों, अभिभावकों, सामुदायिक नेताओं को भी बाल शिक्षा के फायदों एवं बाल मजदूरी के नकारात्मक प्रभावों के बारे में जागरूक बनना चाहिए। साथ ही परिवारजनों को आजीविका, भोजन सुरक्षा एवं अन्य सरकारी योजनाओं के बारे में जानकारी दी जानी चाहिए।”