भारत ने कश्मीर पर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार रिपोर्ट को खारिज किया

नई दिल्ली, 8 जुलाई (आईएएनएस)| भारत ने जम्मू एवं कश्मीर पर संयुक्त राष्ट्र के एक निकाय की उस मानवाधिकार रिपोर्ट को सिरे से खारिज कर दिया है जिसमें दावा किया गया है कि राज्य में मई 2018 से जितने नागरिक मारे गए हैं, वह संख्या पिछले एक दशक में सर्वाधिक हो सकती है। भारत सरकार ने सोमवार को इस रिपोर्ट को कश्मीर पर ‘पहले जैसे ही झूठे और अभिप्रेरित बयान का जारी रहना’ करार दिया। जम्मू एवं कश्मीर मामले पर आफिस आफ द हाई कमीशन फॉर ह्यूमन राइट्स (ओएचसीएचआर) की अपडेट रिपोर्ट सोमवार को जारी की गई। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने एक बयान में कहा, “संयुक्त राष्ट्र निकाय के यह दावे भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का उल्लंघन हैं। यह सीमापार आतंकवाद के मुद्दे की अनदेखी भी करते हैं।”

उन्होंने कहा कि ओएचसीएचआर ने पाकिस्तान से होने वाले सीमापार आतंकवादी हमलों द्वारा पैदा की गई स्थिति का ‘विश्लेषण’ बिना इसके द्वारा होने वाली जनधन की हानि का जिक्र किए किया है।

मंत्रालय ने अद्यतन रिपोर्ट को ‘दुनिया के सबसे बड़े और सर्वाधिक गतिशील लोकतंत्र की कृत्रिम तुलना एक ऐसे देश से करने का अवास्तविक प्रयास करार दिया जो खुलकर राज्य प्रायोजित आतंकवाद का पालन करता है।’

मंत्रालय प्रवक्ता ने इस बात पर भी ‘गंभीर चिंता जताई कि यह रिपोर्ट ऐसा लगता है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अवस्थिति के बिलकुल उलट आतंकवाद को एक वैधता प्रदान करती दिखती है।’

उन्होंने कहा कि सुरक्षा परिषद ने फरवरी 2019 में पुलवामा में हुए कायराना आतंकी हमले की निंदा की थी और बाद में आतंकी संगठन जैश ए मोहम्मद के स्वघोषित नेता मसूद अजहर को निषिद्ध घोषित किया था। लेकिन, इस अपडेट में संयुक्त राष्ट्र द्वारा करार दिए गए आतंकी नेताओं और संगठनों को जान बूझकर ‘सशस्त्र समूहों’ के रूप में बताकर इन्हें कम आंका गया है।

उन्होंने ‘भारत की नीतियों, मूल्यों को गलत रूप में प्रस्तुत करने के लिए’ ओएचसीएचआर की निंदा की और कहा कि इससे संयुक्त राष्ट्र निकाय की विश्वसनीयता पर असर पड़ा है।

प्रवक्ता ने कहा, “यह भारतीय राज्य जम्मू एवं कश्मीर में स्वतंत्र न्यायपालिका, मानवाधिकार संस्थाओं और अन्य संबंधित व्यवस्थाओं को पहचानने में विफल रही है जो भारतीय नागरिकों के संविधान प्रदत्त मूल अधिकारों की सुरक्षा करते हैं। ऐसा करना पूरी तरह से निंदनीय है।”

संयुक्त राष्ट्र ओएचसीएचआर रिपोर्ट के अनुसार, ‘कश्मीर में तनाव, जो पुलवामा आत्मघाती हमले के बाद से बहुत बढ़ गया है, नागरिकों के मानवाधिकार, जिसमें उनके जीवन का अधिकार भी शामिल है, पर लगातार बेहद घातक प्रभाव डाल रहा है।’

स्थानीय नागरिक समूहों से एकत्रित डेटा के आधार पर रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘2018 में करीब 160 नागरिक मारे गए जिसके बारे में विश्वास किया जा रहा है कि मरने वालों की यह संख्या बीते एक दशक में सर्वाधिक है।’

संस्था ने यह भी कहा है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय ने नागरिकों की कम मौतों की जानकारी दी है। मंत्रालय के अनुसार 2 दिसंबर 2018 तक के ग्यारह महीने के दौरान कुल 37 नागरिक, 238 आतंकवादी और 86 सुरक्षाकर्मी मारे गए।

रवीश कुमार ने कहा, “भारत ने इस अपडेट को लेकर ओएचसीएचआर से अपना कड़ा विरोध दर्ज कराया है।”