भारत के बजट में आर्थिक सुधार को बढ़ावा, राजकोषीय लक्ष्य कायम : फिच

मुंबई, 10 जुलाई (आईएएनएस)| ग्लोबल रेटिंग एजेंसी फिच रेटिंग्स ने बुधवार को कहा कि भारत के नए बजट में कुछ आर्थिक सुधारों का खाका तैयार किया गया है जिससे अर्थव्यवस्था को सहारा मिल सकता है। साथ ही, राजकोषीय लक्ष्य को लेकर रुखों में कोई बदलाव नहीं किया गया है। अमेरिकी बहुर्राष्ट्रीय कंपनी के अनुसार, नीतिगत उपायों और राजकोषीय लक्ष्यों के मुख्य विषय कुल मिलाकर अंतरिम बजट के समान है जिसकी घोषणा लोकसभा चुनाव से पहले की गई थी।

फिच ने एक बयान में कहा, “बजट से जाहिर होता है कि भाजपा (भारतीय जनता पार्टी) सरकार अपने दूसरे कार्यकाल में भी आर्थिक सुधार जारी रखेगी और राजकोषीय नीति में ढील देने से बचेगी जिसकी उम्मीद देश की आर्थिक सुस्ती को लेकर की गई होगी।”

रेटिंग एजेंसी ने कहा, “हालांकि अगले कुछ साल के लिए महत्वपूर्ण वित्तीय समेकन के लिए इसकी संभावना के संकेत नहीं है।”

बयान के अनुसार, तीन फीसदी का मध्यम अवधि राजकोषीय घाटा लक्ष्य वित्त वर्ष 2021 और 2022 में काफी असंभव लगता है क्योंकि सरकार को वित्त वर्ष 2025 तक 60 फीसदी की कर्ज की सीमा रखनी होगी जैसा कि राजकोषीय दायित्व व बजट प्रबंधन (एफआरबीएम) अधिनियम में निर्धारित है।

बयान में कहा गया कि आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए अगले पांच साल में इन्फ्रास्ट्रक्चर पर 10 खरब रुपये खर्च करने और इलेक्ट्रॉनिक्स समेत कुछ क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को बढ़ावा देने की कोशिश की गई है।

रेटिंग एजेंसी ने कहा, “सरकार का इरादा कुछ गैर-वित्तीय सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी घटाने और कम से कम 51 फीसदी की प्रत्यक्ष हिस्सेदारी प्राप्त करने की नीति में बदलाव लाने का है। आगे सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में 700 अरब रुपये डाला जाएगा।”

हालांकि रेटिंग एजेंसी ने यह भी बताया कि बजट में उठाए गए कदमों से सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि में कोई भी फायदा विस्तृत नीति और उसके प्रभावकारी कार्यान्वयन पर निर्भर करेगा।

हालिया ग्लोबल इकॉनोमिक आउटलुक-जून 2019 में एजेंसी ने भारत के वित्त वर्ष 2019-20 के जीडीपी विकास दर अनुमान को थोड़ा घटाकर 6.6 फीसदी कर दिया।

एजेंसी ने बयान में कहा, “हम अभी भी वित्त वर्ष 21 और 22 में वापस सात फीसदी की विकास दर देखते हैं क्योंकि हम निजी क्षेत्र के लिए साख में कुछ रिकवरी को बढ़ावा देने के मकसद से केंद्रीय बैंक से मौद्रिक व विनियामक संबंधी सरलता की उम्मीद करते हैं।”