पुराने निष्ठावान बचे हुए 4 साल भी ऐसे ही सडेंगे…

संतोष मिश्रा

पिम्परी। जैसा कि तय माना जा रहा था विधायक महेश लांडगे समर्थकों के इस्तीफों का दौर एक सियासी ड्रामा ही साबित हुआ और स्थायी समिति अध्यक्ष पद पर भाजपा शहराध्यक्ष व विधायक लक्ष्मण जगताप की समर्थक ममता गायकवाड़ विराजमान हो गई। असंतुष्टों को मानने से लेकर समझाईश देने तक के हथकंडो से भाजपा के शीर्ष नेताओं ने सम्भावित गड़बड़ी रोकने में सफलता पा ली। हांलाकि विधायक लांडगे समर्थकों में उनके साथ नाइंसाफी होने की भूमिका कायम है। मगर सही मायने में जिनके साथ नाइंसाफी हुई, उस खेमे से पहली प्रतिक्रिया मिल गई। भले ही यह प्रतिक्रिया बिना नाम के साथ मिली है मगर वह है काफी मार्मिक। नाइंसाफ़ी हुई किसके साथ और नाइंसाफ़ी का ढोल पीट कर ड्रामा कौन कर रहे हैं? भाजपा के पुराने निष्ठावान तो बचे हुए 4 साल भी इसी तरह से सडेंगे।

भौगोलिक गणित का खेल

सत्ता परिवर्तन के बाद स्थायी समिति का अध्यक्ष पद विधायक व शहराध्यक्ष लक्ष्मण जगताप गुट की सीमा सावले को मिला। इस पद पर पहुंचनेवाली वह भाजपा की पहली व मनपा में पिछड़े वर्ग की महिला साबित हुई। इस साल का अध्यक्ष पद विधायक महेश लांडगे गुट को मिलना तय माना जा रहा था, मगर सावले भी विधायक लांडगे के भोसरी विधानसभा क्षेत्र से रहने का तर्क देते हुए जगताप के खेमे से मनपा के महापौर, सभागृह नेता और स्थायी समिति अध्यक्ष तीनों अहम पद भोसरी निर्वाचन क्षेत्र में जाने का ढोल पीटते हुए इस साल के स्थायी समिति अध्यक्ष पद पर कब्जा जमा लिया। आज इस गुट की ममता गायकवाड़ अध्यक्ष पद पर विराजमान हुई।

नाराजगी का ड्रामा ही
गायकवाड़ को प्रत्याशी घोषित करते ही लांडगे समर्थकों ने नाइंसाफी का ढोल पीटते हुए इस्तीफों का दौर शुरू कर दिया। हांलाकि पुणे समाचार ने इस दौर को आरंभ से ही ड्रामा करार दिया था। हुआ भी ठीक ऐसे ही, इस्तीफा देने के बाद महापौर नितिन कालजे दूसरे दिन से हमेशा की तरह कामकाज में तल्लीन हो गए। लांडगे समर्थक और स्थायी समिति अध्यक्ष पद हेतु तीव्र इच्छुक रहे राहुल जाधव के साथ ही इस्तीफा देकर राष्ट्रवादी कांग्रेस के प्रत्याशी मोरेश्वर भोंडवे की प्रेस कांफ्रेंस में झलके पुराने निष्ठावान गुट के शीतल शिंदे दोनों आज वोटिंग के लिये सबमें आगे नजर आए। अन्य इच्छुक में शामिल दूसरे निष्ठावान विलास मडेगीरी ने तो नाराजगी की तलवार पहले दिन से ही म्यान कर ली। वे और शीतल शिंदे दोनों नामांकन दाखिल करते ममता गायकवाड़ के सूचक व अनुमोदक बने। इससे नाराजगी महज ड्रामा रहने की बात पर एक और मुहर लग गई।

क्या ली जायेगी दखल?
चुनाव के बाद भी लांडगे समर्थको की उनके साथ नाइंसाफी होने की भूमिका पर कायम नजर आ रहे हैं। जबकि सही मायने में अगर किसी के साथ नाइंसाफी हुई है तो वह विलास मडेगीरी और शीतल शिंदे के साथ। ये दोनों तब से भाजपा के साथ हैं जब पार्टी पिम्परी चिंचवड़ में अपना वजूद तलाश रही थी। ये दोनों भी क्रमवार तीसरी और दूसरी बार नगरसेवक चुने गए हैं। इतने सालों में जब भाजपा मनपा की सत्ता में आई और पुराने निष्ठावानों में ‘अच्छे दिन’ की उम्मीद जगी तब उन्हें ही अहम पदों से दूर रखा जा रहा है। ऐसा नहीं है कि राष्ट्रवादी कांग्रेस से भाजपा में हामिल हुए विधायक लक्ष्मण जगताप और महेश लांडगे व उनके समर्थकों के मनपा की सत्ता लाने के योगदान से कोई इन्कार कर रहा है। मगर नगरसेवक चुने गए पुराने निष्ठावानों जो कि उंगली पर गिनने की तादाद में भी नहीं हैं, को सत्ता का लाभ कहीं न कहीं मिलना भी जरूरी है। कुल मिलाकर सही मायने में नाइंसाफी मडेगीरी और शिंदे के साथ हुई है, मगर इसका ढोल कोई और ही पीट रहा है। निष्ठावानों ने तो अब मन बना लिया है कि वे इसी तरह से सड़ते रहेंगे। उनकी इस प्रतिक्रिया की भाजपा के शीर्ष स्तर से क्या दखल ली जाएगी और ली जायेगी भी या नहीं? इसकी उत्सुकता बढ़ गई है।