नागरिकता अधिनियम 1955 से कैसे अलग है सीएए

 नई दिल्ली, 16 जनवरी (आईएएनएस)| विवादास्पद नागरिकता संशोधन कानून द्वारा नागरिकता अधिनियम 1955 में संशोधन किया गया है।

 सीएए का उद्देश्य छह अल्पसंख्यक समुदायों- हिंदुओं, पारसियों, सिखों, बौद्धों, जैनियों और ईसाइयों को भारतीय नागरिकता प्रदान करना है- जिन्हें अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान में धार्मिक रूप से सताया गया है। ये लोग 31 दिसंबर, 2014 को या इससे पहले भारत आए हैं, तो इन्हें नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान है।

नया नागरिकता कानून 10 जनवरी को प्रभावी हो गया। इसे 11 दिसंबर 2019 को संसद से पारित कर दिया गया और बाद में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 12 दिसंबर को इसे मंजूरी दे दी।

यह नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 2 में संशोधन करता है। इसके तहत कहा गया है कि छह गैर-मुस्लिम समुदाय जिन्होंने 31 दिसंबर 2014 को या उससे पहले तीन मुस्लिम-बहुल देशों से भारत में प्रवेश किया था और जिन्हें पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम 1920 या फारेनर्स अधिनियम 1946 के प्रावधानों के आवेदन से छूट दी गई है, उन्हें इस अधिनियम के उद्देश्यों के तहत अवैध प्रवासी नहीं माना जाएगा।

सीएए में एक नई धारा 6बी शामिल की गई है जिसमें चार ब्योरे का उल्लेख है और उनमें से एक में कहा गया है कि केंद्र सरकार या इस संबंध में इसके द्वारा निर्दिष्ट प्राधिकरण प्रतिबंध निर्धारित कर सकता है, जिसे सीएए के तहत सर्टिफिकेट के रजिस्ट्रेशन की अनुमति है।

इसमें कहा गया, “धारा 5 में निर्दिष्ट शर्तो को पूरा करना या तीसरी अनुसूची के प्रावधानों के तहत नैचुराइलेजेशन की योग्यता के अधीन, एक व्यक्ति को रजिस्ट्रेशन का प्रमाणपत्र दिया जाता है और उसे भारत में प्रवेश करने के दिन से देश का नागरिक माना जाएगा।”

धारा 6बी के तीसरे ब्योरे में कहा गया, “नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 के प्रारंभ होने की तारीख से इस धारा के तहत किसी व्यक्ति के खिलाफ अवैध प्रवास या नागरिकता के संबंध में लंबित कोई कार्यवाही नागरिकता प्रदान किए जाने के बाद रोक दी जाएगी।”