दबाव की राजनीति कहीं पड़ न जाए भारी

खाली न रह जाए पहलवान विधायक के हाथ

संतोष मिश्रा

पिम्परी। रिश्तेदारी और असंतुष्टों की ताकत से निर्दलीय विधायक चुने गए पहलवान महेश लांडगे की शुरू से जारी दबाव की सियासत अब उनपर भारी पड़ती नजर आ रही है। भाजपा में प्रवेश से पिम्परी चिंचवड़ मनपा चुनाव और महापौर चुनाव से हालिया सम्पन्न हुए स्थायी समिति अध्यक्ष पद के चुनाव तक, हर बार उन्होंने दबावतंत्र का इस्तेमाल किया। इसमें से करीबियों को टिकट व महापौर पद हासिल करने जैसे कुछ अपवाद छोड़ दिए जाय तो कुछ खास हासिल नहीं हो सका है। उल्टे हर बार दबावतंत्र के इस्तेमाल से छवि जरूर धूमिल हो रही है। स्थायी समिति अध्यक्ष के चुनाव में तो यह दबावतंत्र बूमरैंग साबित हुआ है। ऐसे में दबाव की सियासत से कहीं पहलवान विधायक के हाथ खाली न रह जाए, इसके आसार नजर आ रहे हैं।

आखिर तक झुलाए रखा

पहले हवेली फिर नए से अस्तित्व में आये भोसरी विधानसभा क्षेत्र से लगातार दो बार विधायक चुने राष्ट्रवादी कांग्रेस के विधायक विलास लांडे, जो कि रिश्ते में ममिया ससुर भी हैं, को उन्हीं के रिश्तेदार, नाराज और असन्तुष्ट नगरसेवक, नेता, कार्यकर्ताओं को एकजुट कर धूल चटाते हुए महेश लांडगे ने विधायक की कुर्सी पर कब्जा जमाया। केंद्र के बाद राज्य में भी सत्ता परिवर्तन होने के बाद उन्होंने सत्ताधारी भाजपा से नजदीकियां बढ़ाई, निर्दलीयों का समर्थन दिलाने में अहम भूमिका निभाते हुए मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के करीबी भी बन गए। हांलाकि भाजपा में प्रवेश से वे लगातार बचते रहे और मंत्री या महामंडल का अध्यक्ष पद देने की शर्त पर ही प्रवेश करने को लेकर दबावतंत्र अपनाते रहे। मगर भाजपा नेताओं ने आखिर तक उन्हें झुलाए रखा।

सत्ता मिली मगर हाथ खाली

इसी दौरान पिम्परी चिंचवड़ मनपा के चुनाव करीब आ गये। मनपा की सत्ता पाने के लिए भाजपा ने विधायक लांडगे को प्रवेश के लिए विवश कर दिया। तब उन्होंने उनके साथ राष्ट्रवादी कांग्रेस और दूसरी पार्टीयों के नगरसेवक व नेताओं को टिकट दिलाने के लिए पुनः दबावतंत्र अपनाया और भोसरी निर्वाचन क्षेत्र में टिकट वितरण अपने हाथों में लिया। चूंकि हर हाल में राष्ट्रवादी से मनपा की सत्ता हथियानी थी, भाजपा ने भी उन्हें फ्री हैंड दे दिया। सत्ता आने के बाद ही मंत्री या महामंडल देने की शर्त भी रखी। सत्ता पाकर साल बीत गया फिर भी पहलवान विधायक के हाथ खाली ही रहे। सत्ता परिवर्तन के बाद भाजपा के पहले महापौर पद हेतु पुराने निष्ठावान गुट के नगरसेवक नामदेव ढाके का नाम निश्चित हुआ। यहाँ भी अपने समर्थक नितिन कालजे को यह पद दिलाने के लिए विधायक लांडगे ने दबावतंत्र अपनाया। पहली बार सत्ता मिली है पहले चुनाव में ही कोई गड़बड़ी न हो इसके लिए मुख्यमंत्री ने उन्हें हरी झंडी दिखा दी।

माली समाज भी हुआ नाराज

महापौर पद अपने समर्थक को दिलाने में विधायक लांडगे ने सफलता तो पा ली मगर उन्हें विधायक बनाने में बड़ा योगदान देने वाला माली समाज उन पर नाराज हो गया। क्योंकि महापौर पद ओबीसी प्रवर्ग हेतु आरक्षित था और काफी चेताने के बाद भी मूल ओबीसी की बजाय कुणबी मराठा समाज के नगरसेवक को यह पद मिला। हांलाकि तब भाजपा का पहला महापौर पद अपने कब्जे में लेने की शेखी लांडगे समर्थक साल भर बघारते रहे। इसके बाद विधायक लांडगे ने माली समाज की नाराजगी को दूर करने के साथ अपने कट्टर समर्थक राहुल जाधव को स्थायी समिति का अध्यक्ष पद दिलाने हेतु कमर कस ली। महापौर, स्थायी समिति अध्यक्ष और सभागृह नेता तीनों अहम पड़ भोसरी निर्वाचन क्षेत्र में जाने का तर्क पेश करते हुए भाजपा शहराध्यक्ष व विधायक लक्ष्मण जगताप ने अपनी समर्थक ममता गायकवाड़ को उम्मीदवारी दिलाने में सफलता पायी। यहां भी विधायक लांडगे ने दबावतंत्र अपनाया। महापौर समेत उनके समर्थकों ने इस्तीफों का दौर चलाया। हांलाकि इस बार उनका पैंतरा काम न कर सका। आगामी विधानसभा व लोकसभा चुनाव को ध्यान में रख  मुख्यमंत्री समेत आला नेताओ की समझाइश पर लांडगे समर्थकों को बगावत की तलवार म्यान करनी पड़ी। इस बार भी पहलवान विधायक का दबावतंत्र काम न आया, उल्टे मुंह की खानी पड़ी सो अलग। शुरू से लगातार की जा रही दबाव की सियासत अब उन पर भारी पड़ने लगी है। ऐसे में मंत्री या महामंडल का अध्यक्ष पद पाने का उनका ख्वाब कहीं ख्वाब ही न बनकर रह जाए, इस तरह की चर्चा सियासी गलियारे में शुरू हो गई है।