खर्च बढ़ने से आगामी वित्त वर्ष में बना रहेगा राजकोष पर भार

 नई दिल्ली, 26 जनवरी (आईएएनएस)| खर्च बढ़ने से अगले वित्त वर्ष में भी राजकोष को लेकर सरकार की चिंता बनी रह सकती है।

  कर राजस्व की स्थिति खराब रहने के बावजूद सरकार के राजस्व और पूंजीगत खर्च में अगले वित्त वर्ष 2020-21 में चालू वित्तीय वर्ष के अनुमान 27.86 लाख करोड़ रुपये से 20 फीसदी का इजाफा होने की उम्मीद है।

सूत्र बताते हैं कि ब्याज भुगतान, पेंशन और अनुदान पर चालू वित्त वर्ष में 24.47 लाख करोड़ रुपये के राजस्व खर्च के मुकाबले आगामी वित्त वर्ष 2020-21 में 15 फीसदी की वृद्धि हो सकती है, जबकि पूंजीगत खर्च चालू वित्त वर्ष के 3.38 लाख करोड़ रुपये से अगले वित्त वर्ष में पांच फीसदी ज्यादा हो सकता है।

वित्त वर्ष 2019-20 में केंद्र सरकार को कुल बजटीय खर्च 27.86 लाख करोड़ रुपये था। इसमें पूंजीगत व्यय 3.38 लाख करोड़ रुपये और राजस्व खर्च 24.27 लाख करोड़ रुपये था।

अगर, खर्च में 20 फीसदी का इजाफा होता है तो कुल खर्च 5.4 लाख करोड़ रुपये बढ़ जाएगा। ऐसे में अगर भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) सरकार को राजकोषीय दायित्व और बजट प्रबंधन अधिनियम का अनुपालन करने के लिए योजनाओं और अनुदान पर ऑफ-बजट फाइनेंसिंग का उपयोग नहीं बढ़ाने की सलाह देता है तो सरकार की मुश्किलें बढ़ सकती है। ऑफ-बजट फाइनेंसिंग में राजकोषीय संकेतकों पर ध्यान नहीं दिया जाता है।

इस प्रकार की वित्त व्यवस्था में सरकार के खर्च, उधारी और कर्ज की वास्तविक सीमा को छिपाने और ब्याज का भार बढ़ाने की कोशिश की जाती है।

विशेषज्ञों का मानना है कि कर राजस्व में अनुमानित दो लाख करोड़ रुपये की कमी होने से मौजूदा राजकोषीय घाटा 3.3 फीसदी से बढ़कर 3.7 फीसदी तक जाता सकता है। कर्मचारियों के वेतन, पिछले कर्ज के लिए ब्याज का भुगतान, अनुदान, पेंशन आदि पर खर्च राजस्व प्राप्तियों से किया जाता है।

आगामी वित्त वर्ष 2020-21 में सड़क, रेलवे, अक्षय ऊर्जा और आवासीय परियोजनाओं पर पूंजीगत खर्च चालू वित्त वर्ष के 3.38 लाख करोड़ से 20 फीसदी अधिक किया जा सकता है ताकि सुस्ती के दौर से अर्थव्यवस्था को बाहर निकाला जा सके और रोजगार के अवसर पैदा हो, जिससे आय और उपभोग में वृद्धि होगी।