किसान पिता के सपनों को साकार करने वाली साहसी बेटियाँ

पुणे : पुणे समाचार

किसान परिवारों के हालात किसी से छिपे नहीं हैं…लेकिन तब भी विपरीत परिस्थितियों में अपनी बेटियों के लिए एक ख़ुशहाल जीवन का सपना एक किसान देखता है। तब जबकि कई किसान आत्महत्या करने के लिए प्रवृत्त हो रहे हैं उस दौर में इस किसान ने तीन बेटियों की न केवल परवरिश की बल्कि उन्हें पढ़ा-लिखाकर इस काबिल बनाया कि दुनिया के सामने वे मिसाल बन जाएँ। पुणे समाचार इस किसान को सलाम करता है!

घर के चिराग केवल बेटे नहीं होते बल्कि बेटियाँ भी वह ज्योति बन सकती है जिससे कुल-खानदान का नाम रोशन होता है, इसे साकार करते हुए एक पिता की तीनों बेटियों ने पुलिस महकमे में अपना रूतबा स्थापित किया है। हर पिता-पुत्री के रिश्ते में यह कहानी उम्मीद जगाती है। पुणे जिले का म्हस्के परिवार वह जीती-जागती मिसाल है। परिवार की पहली बेटी ने शादी के बाद सरकारी नौकरी छोड़कर पति की इच्छा का सम्मान करते हुए पुलिस अधिकारी के पद को सुशोभित किया है। अन्य दो बहनें भी पुलिस विभाग में कार्यरत है।

शुभांगी म्हस्के-पवार, कीर्ति म्हस्के और गिरीजा म्हस्के उन तीन पुलिस अधिकारी भगिनियों के नाम हैं। तीनों ने पुलिस विभाग की प्रतियोगी परीक्षा को उत्तीर्ण कर उपनिरीक्षक का पद हासिल किया है। शुभांगी म्हस्के-पवार पुणे में राज्य गुप्त वार्ता विभाग में कार्यरत है। गिरीजा पुणे के समर्थ पुलिस थाने में पदस्थ है और कीर्ति कोंढवा यातायात विभाग में सेवाएँ दे रही हैं।

पुणे जिले के शिरूर तहसील के इनिमा गाँव में म्हस्के परिवार रहता है। भरत और मंगल म्हस्के इस दंपत्ति की संतानों में छह लड़कियाँ और एक लड़का है। भरत म्हस्के ने सातवीं तक पढ़ाई की है जबकि मंगल म्हस्के चौथी कक्षा उत्तीर्ण है। शादी के बाद उनकी पहली तीन बेटियों के नाम प्रतिभा, शुभांगी और स्मिता है। तीन बहनों के बाद सिद्धेश्वर का जन्म हुआ। उसके बाद मनीषा, कीर्ति और गिरीजा का जन्म हुआ। म्हस्के खेती-किसानी करते हैं। उनके 17 एक़ड़ खेत से होने वाली आय ही उनकी आजीविका का एकमात्र साधन। इतने बड़े परिवार का इतने भर से गुज़ारा करना वैसे तो मुश्किल ही, लेकिन तब भी उन्होंने बेटियों को पढ़ाने-लिखाने और काबिल बनाने का निर्णय लिया। सिद्धेश्वर ने भी पिता के सपने को पूरा करने के लिए उनके खेती के कामों में पूरा सहयोग देना प्रारंभ किया। उसने अपनी पढ़ाई को तिलांजलि देकर बहनों को पढ़ाने पर ज़ोर दिया। इस बीच शुभांगी, प्रतिभा, स्मिता और मनीषा की शादी भी हो गई। गिरीजा और कीर्ति का अभी विवाह होना है।

शुभांगी जो महिला एवं बाल कल्याण विभाग में कार्यरत थी, उन्होंने पति के कहने पर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी की और वर्ष 2011 में पुलिस भर्ती की परीक्षा दी। पहली ही कोशिश में वे पुलिस विभाग में उपनिरीक्षक के पद पर नियुक्त हो गई। कीर्ति और गिरीजा ने भी अपनी बड़ी बहन का आदर्श सामने रख प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी शुरू कर दी। शुभांगी का चयन हो जाने से दोनों बहनों का हौंसला और मज़बूत हो गया। दोनों बहनों ने वर्ष 2012 में परीक्षा दी और पहली ही कोशिश में उनकी पुलिस दल में भर्ती हो गई।

तीनों बेटियों ने न केवल अपने माता-पिता का बल्कि अपने भाई का भी सीना चौड़ा कर दिया। माता-पिता के सपने को तीनों ने सच कर दिखाया। अब चौथी बेटी मनीषा भी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रही है। उसे भी पुलिस विभाग में काम करना है।

देश में ‘बेटी बचाओ’ का नारा सुनाई देता है और उसी वक़्त कोई नवजात कन्या किसी कचरे के ढेर पर पड़ी मिलती है…जो उस नारे को खोखला साबित कर देती है, लेकिन म्हस्के परिवार उस नारे का जयकारा नहीं लगाता बल्कि उसे जीता है, उनकी बेटियों को देख सम्मान का भाव जगाता है।

कहाँ से मिली प्रेरणा
घर के हालात बहुत अच्छे नहीं थे। पढ़ाई-लिखाई के लिए, कई बार कागज़ात बनवाने आदि कामों से तहसील जाना पड़ता था। तब वहाँ के अधिकारियों को देख लगता था काश मैं भी अधिकारी बन पाऊँ… पुलिस की वर्दी को देखकर उस रूतबे, जिम्मेदारी का अहसास होता था और वही प्रेरक बना। प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करना शुरू किया। परीक्षा देकर हम तीनों बहनों ने पुलिस अधिकारी बनकर दिखाया। हमारी सफलता का सारा श्रेय हमारे माता-पिता और भाई को जाता है। उनके सहयोग और आशीष के बिना हम यहाँ तक नहीं पहुँच सकते थे। हमारे परिवार का कोई पुलिस विभाग में नहीं था और अब हम एक ही परिवार की तीन बहनें इस विभाग में है, बहुत नाज़ होता है।

गिरीजा म्हस्के, पुलिस उप निरीक्षक