कारगिल में हमने बिना हारे लौटने की कसम खाई थी : पूर्व सैनिक

 नई दिल्ली, 14 जुलाई (आईएएनएस)| साल 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान तोलोलिंग चोटी से भारी गोलीबारी हो रही थी लेकिन दो राजपूताना राइफल्स के बहादुर सैनिकों ने घुसैठियों को वापस खदेड़ने की दृढ़ प्रतिज्ञा की थी।

  युद्ध में बुरी तरह घायल होने पर समय से पहले सेवानिवृत्त होने के लिए मजबूर होने वाले कैप्टेन (सेवानिवृत्त) अखिलेश सक्सेना ने युद्ध की 20वीं सालगिरह के मौके पर उन घटनाओं को याद करते हुए कहा कि सैनिकों ने अपने सिर पर भगवा कपड़ा बांध लिया था और पाकिस्तानी सेना द्वारा धोखे से कब्जाई गई जमीन पर दोबारा कब्जा किए बिना ना लौटने की कसम खा ली थी।

अखिलेश ने आईएएनएस से बात करते हुए तोलोलिंग पर एक जून को और इसके बाद 3 पिंपल्स पर 29 जून को कब्जा वापस लेने की कुछ घटनाओं के बारे में बताया। इस दौरान कैप्टन विजयंत थापर और मेजर पद्मपाणि आचार्य जैसे कई बहादुर सैनिक शहीद हो गए।

कारगिल युद्ध शुरू होने से सिर्फ एक महीने पहले शादी करने वाले कैप्टन सक्सेना का हाथ 3 पिंपल्स पर कब्जा वापस लाने के दौरान बुरी तरह जख्मी हो गया था।

उन्होंने कहा, “हमने इस कसम के साथ अपने सिर पर भगवा कपड़ा बांध लिया था कि हम लोग बिना हारे और अपनी पहाड़ियों पर कब्जा वापस लिए बिना नहीं लौटेंगे।”

वर्तमान में टाटा कम्युनिकेशंस में उपाध्यक्ष पूर्व सैन्य अधिकारी ने कहा, “बुरी तरह घायल होने के बावजूद हम सभी लोग दुश्मनों से लड़ते रहे और आगे बढ़ते रहे।”

अधिकारी ने पर्वत की चोटी पर मोर्चा संभाले पाकिस्तानी सैनिकों पर बोफोर्स से हमला करने और चोटियों पर दोबारा कब्जा करने में भारतीय सैनिकों के लिए खतरे के बारे में बताया।

उन्होंने कहा, “बोफोर्स इकाई को सही दिशा देना और टीम से समन्वय स्थापित करना मुश्किल था लेकिन हमने यह सफलतापूर्वक किया और कई पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया।”

पाकिस्तान ने उन चोटियों पर कब्जा कैसे कर लिया, इस पर उन्होंने कहा कि सर्दियों में कारगिल हमेशा सुनसान हो जाता था और भारत तथा पाकिस्तान- दोनों देशों के सैनिक अक्टूबर में सर्दी आने के समय वहां स्थित अपनी चौकियों से निकल आते थे।

उन्होंने कहा कि उन चौकियों पर बने रहने के लिए प्रतिदिन 12 करोड़ रुपयों का खर्चा आता और पाकिस्तान की तरफ से भी यही स्थिति थी।

किसी ने नहीं सोचा था कि 1999 कारगिल भी होगा।

उन्होंने पाकिस्तान की इस हरकत के लिए खुफिया एजेंसियों की असफलता को जिम्मेदार ठहराया। इस युद्ध में भारत के लगभग 520 सैनिक शहीद हो गए थे।

कैप्टेन सक्सेना युद्ध में चूंकि बुरी तरह घायल हो गए थे, तो वे सेना से सेवानिवृत्त हो गए।

वर्तमान सरकार द्वारा दिव्यांगों की पेंशन पर कर लगाने के फैसले पर उन्होंने कहा, “यह दुर्भाग्यपूर्ण है।”

उन्होंने कहा, “मैं भी दिव्यांग पेंशन का लाभकर्ता हूं। जब हम देश के लिए अपना जीवन देने के लिए तैयार हैं तो सरकार को सेना और उनकी सेवा का सम्मान करना चाहिए।”