कलेक्टर बनने में अंग्रेजी बनी रोड़ा तो छात्रों ने लगाई भाजपा नेताओं से गुहार

नई दिल्ली, 15 फरवरी(आईएएनएस)। संघ लोक सेवा आयोग की सिविल सर्विसेज परीक्षा में हिंदी माध्यम छात्रों की घटती संख्या एक बार फिर बहस का विषय बनने लगी है। आईएएस-आईपीएस बनने का सपना लेकर दिल्ली में तैयारी करने वाले कई छात्र पिछले एक हफ्ते में दो बार भाजपा मुख्यालय पहुंच कर शीर्ष नेताओं से गुहार लगा चुके हैं।

राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष और राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मिलकर उन्हें परीक्षा में अंग्रेजी के दबदबे की बात बताई तो नेताओं ने उनकी समस्या सरकार के सामने रखने का आश्वासन दिया है। छात्रों का कहना है कि परीक्षा में अंग्रेजी का वर्चस्व होने के कारण हिंदी माध्यम के छात्रों की सफलता दर मात्र दो प्रतिशत रह गई है जो कभी 35 प्रतिशत होती थी।

अभ्यर्थियों का कहना है कि संघ लोक सेवा आयोग की ओर से 2011 से प्रारंभिक परीक्षा में सी-सैट (कॉमन सिविल सर्विसेस एप्टीट्यूड टेस्ट) लागू किया गया। 200 अंकों का सी-सैट होता है। इसमें अंग्रेजी कंप्रीहेंशन के सवाल होते हैं, जिसे हल करना हिंदी माध्यम के छात्रों के लिए बहुत मुश्किल होता है। इससे परीक्षा में उनका ज्यादा समय लग जाता है। जिससे योग्य होने के बाद भी छात्र सिर्फ भाषा के कारण अंग्रेजी माध्यम के छात्रों से पिछड़ जाते हैं।

इतना ही नहीं प्रश्नपत्रों में सवालों के घटिया अनुवाद से भी हिंदी माध्यम छात्रों को नुकसान उठाना पड़ता है। दरअसल कई बार मूल प्रश्नपत्र अंग्रेजी में तैयार होता है, जिसका हिंदी अनुवाद इतना जटिल होता है कि उसे छात्रों की बात छोड़िए हिंदी के प्रोफेसर भी नहीं समझ पाते। जेएनयू और डीयू के प्रोफेसर भी यूपीएससी को इस बाबत शिकायत कर चुके हैं।

मसलन, यूपीएससी की परीक्षा में कई बार आधारभूत की जगह अध:शायी, संकल्पना की जगह संप्रत्यीकरण जैसे शब्दों का इस्तेमाल होता है, जिसे समझना मुश्किल होता है। आरोप है कि अंग्रेजी में बने मूल प्रश्नपत्रों का गूगल ट्रांसलेशन कर हिंदी में सवाल तैयार किया जाता है। अगर छात्र को अंग्रेजी का ज्ञान न रहे तो वह ठीक से सवाल का जवाब भी नहीं दे सकता। ऐसे में सटीक अनुवाद कराने की भी छात्र मांग उठा रहे हैं।

छात्रों ने भाजपा के शीर्ष नेताओं से संपर्क कर बताया कि सीसैट लागू होने से पहले सिविल सेवा में वर्ष 2010 तक हिंदी माध्यम से सफल होने वाले अभ्यर्थियों का आंकड़ा 35 प्रतिशत था जो 2018 में घटकर दो प्रतिशत रह गया है।