आत्मकेंद्रित विकार से निपटने के लिए सामने आ रहे फिल्म प्रोड्यूसर और मनोचिकित्सक

नई दिल्ली, 11 अप्रैल (आईएएनएस)। फिल्म लाइफ एनिमेटेड में तीन साल की उम्र में ओवेन ससकिंड संवाद करने में असमर्थ हैं और माता-पिता को जल्द ही पता चलता है कि वह ऑटिज्म (आत्मकेंद्रित) से पीड़ित है।

पेशेवर मदद से कई उपचारों की कोशिश करने के बाद, ओवेन एनिमेटेड फिल्मों के माध्यम से संवाद करने में सक्षम होता है। ओवेन की कहानी उन माता-पिता के लिए एक उदाहरण है, जिनके बच्चे ऑटिज्म से पीड़ित हैं।

बता दें कि ऑटिज्म संचार और व्यवहार को प्रभावित करता है। इसमें बच्चा सामाजिक संपर्क और संचार स्थापित करने में सक्षम नहीं हो पाता है।

ओवेन की कहानी दुनिया में अकेला एक उदाहरण नहीं है। अप्रैल को विश्व आत्मकेंद्रित माह के रूप में मनाया जाता है और कई युवा फिल्मों के विचार के साथ आगे आ रहे हैं और इस विकार से पीड़ित बच्चों के कल्याण के लिए काम कर रहे हैं। न केवल युवा फिल्म प्रोड्यूसर, बल्कि मनोचिकित्सक भी इस मुद्दे पर खुलकर सामने आ रहे हैं और लोगों को इस संबंध में मुफ्त परामर्श दे रहे हैं।

मुंबई से संबंध रखने वाले लॉस एंजिल्स आधारित एक युवा फिल्म प्रोड्यूसर शिवालिक शंकर ने भी इसी मुद्दे पर एक फिल्म बनाई है।

शंकर कहते हैं, मेरी फिल्म लेट मी बी एक ऑटिस्टिक बच्चे और उसके माता-पिता की दैनिक चुनौतियों को दर्शाती है और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह उन पर खासतौर पर फोकस करती है, जिन माता-पिता को अपने बच्चे की देखभाल करने के लिए अधिक समय और प्रयास करना पड़ता है। अपनी कहानी के माध्यम से मैंने दिखाया है कि कैसे प्रभावित बच्चा अपने माता-पिता के साथ संवाद करने की कोशिश करता है, लेकिन यह उनकी जरूरतों को पूरा करने के लिए बहुत कठिन है। इसलिए वह कल्पना की दुनिया में रहता है, जहां हमें यह देखने को मिलता है कि कैसे वह अपने जीवन को सामान्य व्यक्ति की तरह जीना चाहता है, जो अपने जीवन में हर पल का आनंद लेना चाहता है और उसे संजोना चाहता है।

न केवल फिल्में बल्कि युवा मनोचिकित्सक भी ऑटिस्टिक बच्चों के ऐसे माता-पिता को मदद और परामर्श दे रहे हैं, जो किसी भी परामर्श से वंचित हैं। केजीएमसी लखनऊ के एक नैदानिक मनोवैज्ञानिक (क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट) डॉ. शम्सी अकबर मुफ्त ऑनलाइन परामर्श की पेशकश करती रही हैं और इस उद्देश्य के लिए उन्हें मुंबई, चेन्नई और लखीमपुर खीरी जैसे छोटे स्थानों से भी कॉल आ रहे हैं।

इस बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा, ऑटिज्म एक गंभीर विकासात्मक विकार है, जो संचार या बातचीत करने की क्षमता को बाधित करता है। एएसडी या ऑटिज्म स्पेक्ट्रम विकार तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करता है और प्रभावित व्यक्ति के समग्र संज्ञानात्मक, भावनात्मक, सामाजिक और शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है।

वह कहती हैं कि लक्षणों की गंभीरता अलग-अलग हो सकती है, लेकिन सामान्य लक्षणों में संचार के साथ कठिनाई, सामाजिक संपर्क के साथ कठिनाई और दोहरा व्यवहार शामिल है। बच्चे आंखों के संपर्क (आंख मिलाकर बातचीत) से बचते हैं और उन्हें सुनने में भी दिक्कत हो सकती है। उन्होंने बताया कि 18 महीने की शुरूआत में इसका पता लगाया जा सकता है और उपचार शुरू किया जा सकता है।

नवीनतम अध्ययनों के अनुसार, यह माना जाता है कि भारत में 10 वर्ष से कम उम्र के 100 बच्चों में से एक बच्चे को आत्मकेंद्रित की समस्या है और 8 बच्चों में से लगभग एक बच्चा न्यूरोडेवलपमेंटल स्थिति से गुजर रहा है।

2 अप्रैल को विश्व आत्मकेंद्रित जागरूकता दिवस के रूप में चिह्न्ति किया गया है। एक रिपोर्ट के अनुसार अनुमानित 30 लाख लोग भारतीय उपमहाद्वीप पर ऑटिस्टिक स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (एएसडी) से जूझ रहे हैं।

–आईएएनएस

एकेके/एएनएम