अयोध्या मामला : सवालों की बौछारों से बिदका मुस्लिम पक्ष

नई दिल्ली, 14 अक्टूबर (आईएएनएस)| अयोध्या विवाद मामले के अंतिम चरण की सुनवाई के दौरान सोमवार को मुस्लिम पक्ष ने प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अगुवाई वाले पांच न्यायाधीशों की पीठ द्वारा किए गए सवालों का मुस्लिम पक्ष ने विरोध किया। मामले में सभी पक्षों को 17 अक्टूबर तक बहस पूरी करनी है। सुन्नी वक्फ बोर्ड की ओर से पेश वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने पीठ से कहा, “आपने उनसे(हिंदू पक्ष से) कोई सवाल नहीं किया, लेकिन सभी सवाल हमसे पूछे। शायद, पीठ को उनसे भी सवाल करना चाहिए।”

वह 1880 के दशक में हिंदुओं के पूजा करने के अधिकार पर न्यायधीशों के पूछे गए सवाल का जवाब दे रहे थे।

धवन ने मामले के महत्वपूर्ण पहलू पर अदालत का ध्यान आकृष्ट किया, और कहा, “1989 तक हिंदुओं की ओर से विवादित स्थल पर कोई दावा नहीं किया गया था और 1885 से 1989 के बीच भूखंड स्वामित्व का कोई दावा नहीं किया गया..अधिकार के लिए पहला दावा हमारा है। उसके बाद हिंदू पक्षों ने स्वामित्व के लिए दावा किया। 1885 में टाइटल के लिए उनके दावे को खारिज कर दिया गया और 1989 तक इसबीच कुछ नहीं हुआ।”

उन्होंने न्यायाधीशों से कहा कि हिंदू पक्ष ने 1934 से रहे प्रतिकूल कब्जे पर दावा किया है।

उन्होंने पीठ के समक्ष कहा, “मैंने अभी तक टाइटिल नहीं खोया है। हिंदुओं ने केवल पूर्व निर्धारित अधिकार का इस्तेमाल किया है, टाइटिल का नहीं।”

न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ ने धवन से 1885 के मुकदमे से अलग होकर बहस करने के लिए कहा। धवन ने हालांकि 1885 के मुकदमे से संबंधित अपने पक्ष को सामने रखने पर जोर दिया, जहां एक स्थानीय अदालत ने महंत रघुबर दास को विवादित स्थल पर मंदिर बनाने की इजाजत नहीं दी थी।

चंद्रचूड़ ने कहा कि ‘राम चबूतरा’ और ‘सीता रसोई’ हिंदुओं के कब्जे में था। धवन ने जवाब देते हुए कहा कि यह उन्हें केवल पूजा करने के लिए दिया गया था, न कि स्वामित्व के रूप में।

न्यायमूर्ति एस.ए. बोबडे ने धवन से पूछा, “अगर हिंदुओं को पूजा करने का अधिकार था तो क्या यह आपके एकमात्र स्वामित्व के दावे को धूमिल नहीं करता है। मामले में आपकी विशिष्टता कहां है?”

धवन ने जवाब देते हुए कहा, “पीठ हिंदू पक्षकारों द्वारा मामले के समर्थन में बताई गई कहानियों और यात्रा वृतांतों पर किस तरह से विश्वास जताएगी..ये उद्धरण बमुश्किल ही पूजा के आधार पर हमारे दोस्त के 1989 के मुकदमे का समर्थन करेंगे।”

मुस्लिम पक्ष का दावा है कि 1989 का मुकदमा रामजन्मभूमि न्यास की तरफ से किया गया, जिसका गठन विश्व हिंदू परिषद द्वारा एक विशेष औजार के रूप में किया गया था, ताकि विवाद में एक पक्ष खड़ा किया जा सके।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने विवादित स्थल के बाहरी प्रांगण में निवासरत ‘बैरागियों’ की उपस्थिति का सबूत के तौर पर जिक्र किया।

इस प्रकार के सिलसिलेवार सवाल ने धवन को परेशान कर दिया और उन्होंने अपनी आपत्ति जताई और पीठ द्वारा खुद को निशाना बनाए जाने का आरोप लगाया।

उन्होंने पीठ से इसी तरह के सवाल हिदू पक्षों से पूछने के लिए कहा।