अन्याय के खिलाफ दिल्ली में जुटेंगे 25 हजार आदिवासी : भाजपा सांसद

नई दिल्ली, 7 दिसंबर (आईएएनएस)। अन्याय के खिलाफ और अधिकारों की मांग को लेकर दिल्ली में नौ दिसंबर को आदिवासियों की बड़ी रैली होने जा रही है। रामलीला मैदान में सुबह दस बजे से होने जा रही इस रैली के आयोजन की जिम्मेदारी तेलंगाना के आदिलाबाद से भाजपा सांसद सोयम बापू राव ने संभाली है।

सोयम बापू राव ने आईएएनएस से दावा किया कि इस रैली में तेलंगाना सहित देश भर से करीब 25 हजार आदिवासी जुटकर अन्याय के खिलाफ आवाज बुलंद करेंगे। इस रैली में केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा सहित 41 अन्य आदिवासी सांसद भाग लेंगे।

भाजपा सांसद ने बताया कि आदिवासियों की सिर्फ तीन मुख्य मांगें रहीं हैं-जल, जंगल और जमीन पर हक। इसको लेकर 2006 में वनाधिकार कानून भी बना, मगर इसका आज तक पालन नहीं हुआ है। जिससे जंगलों में रहने वाले आदिवासियों को उनके अधिकार नहीं मिल सके हैं। यह रैली आदिवासी हक्कुला पोरता समिति के बैनर तले हो रही है। यह रैली इसलिए भी मायने रखती है, क्योंकि आदिवासी बाहुल्य राज्य झारखंड में इन दिनों विधानसभा चुनाव भी चल रहे हैं।

भाजपा सांसद सोयम बापू राव ने बताया कि इस बड़ी रैली के पीछे और भी कई मांगें हैं। मसलन, कांग्रेस शासनकाल में इमरजेंसी के दौरान लंबाडी समुदाय को भी आदिवासी मानते हुए अनुसूचित जनजाति(एसटी) का दर्जा दे दिया गया। जिससे मूल आदिवासियों को मिलने वाले आरक्षण व अन्य सुविधाओं का लाभ लंबाडी लोग उठा रहे हैं, जबकि वह आदिवासी नहीं हैं।

भाजपा सांसद ने कहा कि अनुसूचित जनजाति(एसटी) वर्ग की सूची से लंबाडी समुदाय को बाहर निकालने, वनाधिकार कानून-2006 को लागू करने और जंगल की जमीन की समस्या का स्थायी हल निकालने की मुख्य मांग को लेकर यह रैली होगी। वनाधिकार कानून के तहत आदिवासियों को गुजर-बसर के लिए जमीनों के आवंटन की व्यवस्था है, मगर तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, झारखंड, मध्य प्रदेश, कर्नाटक आदि राज्यों में नहीं मिल रहा है। सिर्फ तेलंगाना में ही करीब 33 लाख आदिवासी हैं।

बता दें कि 2006 में बने वनाधिकार कानून के पीछे जंगलों पर निर्भर रहने वाले समुदायों पर किए जा रहे अन्याय को खत्म करने के साथ पर्यावरण संरक्षण में उनकी भूमिका को मजबूत करने की मंशा रही है। मगर, इस कानून का ठीक से पालन न किए जाने से आदिवासियों को अब भी जल, जंगल और जमीन पर हक नहीं मिल सका है। जिसको लेकर अब फिर से आदिवासी मुखर हो रहे हैं।