आयुष्मान कहते हैं, टैबू या रूढ़िगत विषयों के बारे में सिनेमा के माध्यम से निरंतर बात किए जाने की आवश्यकता है क्योंकि इससे लोगों की मानसिकता बदलती है। हालांकि इसमें काफी वक्त और प्रयास लगता है और तब जाकर हम ऐसे विषयों को समाज में सहज बना पाते हैं। मुझे खुशी है कि शुभ मंगल ज्यादा सावधान के माध्यम से हम भारत में मुख्यधारा की किसी फिल्म में समलैंगिक रिश्ते पर बात छेड़ पाए हैं।
उन्होंने आगे कहा, अगर इससे लोगों की सोच कहीं न कहीं प्रभावित हुई है, तो हमारा प्रयास सफल हुआ है।
–आईएएनएस
एएसएन
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