‘सऊदी प्रिंस ने विरोधियों के खिलाफ अभियान को स्वीकृति दी थी’

न्यूयार्क (आईएएनएस) : समाचार ऑनलाईन – अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मुहम्मद बिन सलमान ने विरोधियों को चुप कराने के लिए एक खुफिया अभियान को स्वीकृति दी थी, जिसके अंतर्गत विरोधियों पर नजर रखना, उन्हें अगवा करना, हिरासत में लेना और अत्याचार करना शामिल था। यह स्वीकृति पत्रकार जमाल खाशोगी की हत्या से एक वर्ष पूर्व दी गई थी। द न्यूयार्क टाइम ने अधिकारियों के हवाले से रविवार को अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इस तरह के कुछ गुप्त अभियानों में कुछ ऐसे सदस्य शामिल थे, जो वाशिंगटन पोस्ट के स्तंभकार पत्रकार खाशोगी की पिछले वर्ष अक्टूबर में इस्तांबुल में हुई हत्या में शामिल थे। ऐसे संकेत मिलते हैं कि उनकी हत्या सऊदी असंतुष्टों को चुप करने के एक विस्तृत अभियान के तहत की गई।

इस अभियान की जानकारी उन अमेरिकी अधिकारियों से मिली, जिन्होंने सऊदी अरब के अभियान की गोपनीय खुफिया आंकलनों को पढ़ा था। इसके साथ ही यह जानकारी कुछ अभियानों की सीधी जानकारी रखने वाले सऊदी अरब के नागरिकों से मिली। अधिकारियों ने कहा कि टीम के सदस्य जो सऊदी रैपिड इंटरवेंशन ग्रुप के रूप में जाने जाते थे और जिन्होंने खाशोगी की हत्या की, वे लोग 2017 से शुरू हुए कम से कम ऐसे दर्जनों अभियानों में शामिल रहे।

समूह को प्रिंस मुहम्मद द्वारा अधिकृत किया गया था और उनके वरिष्ठ सहयोगी साद-अल-खतानी और क्राउन प्रिंस के साथ विदेशों की यात्रा करने वाले एक खुफिया अधिकारी माहेर अब्दुलाजीज मुतरेब जमीनी स्तर पर इस अभियान को देखते थे। टीम के अन्य सदस्य थार घालेब अल-हर्बी हैं, जिसे 2017 में प्रिंस मुहम्मद के महल पर हमले के दौरान बहादुरी दिखाने के लिए पदोन्नत किया गया था।

रिपोर्ट के अनुसार इनमें से कुछ अभियानों में दूसरे अरब देशों में रह रहे अपने नागरिकों को देश वापस लाना और क्राउन प्रिंस और उनके पिता किंग सलमान बिन अब्दुलजीज अल सउद से जुड़ी जगहों पर उन्हें हिरासत में रखना और उन्हें यातनाएं देना शामिल था।

रिपोर्ट की प्रतिक्रिया में वाशिंगटन में सऊदी दूतावास के प्रवक्ता ने द न्यूयार्क टाइम्स से कहा कि सऊदी अरब ‘मुकदमे का सामना कर रहे किसी भी कैदी के साथ दुर्व्यवहार या उत्पीड़न के आरोप को काफी गंभीरता के साथ लेता है।’ प्रवक्ता ने कहा, “सऊदी कानून यातनाओं पर रोक लगाता है और इस तरह के सत्ता के दुरुपयोग में जो भी शामिल होता है, उसे जवाबदेह ठहराता है। न्यायधीश भी यातना देकर प्राप्त स्वीकारोक्ति को स्वीकार नहीं कर सकते।”