भाजपा के चुनावी अभियान के पीछे आरएसएस की मशीनरी और दिमाग

 नई दिल्ली, 18 मार्च (आईएएनएस)| भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के अध्यक्ष अमित शाह ने इसी महीने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत से मुलाकात कर लोकसभा चुनाव के समर में मदद मांगी।

 भाजपा अध्यक्ष ने इसी मकसद से सत्ता पक्ष की विचाराधारा के स्रोत अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा (एबीपीएस) में भी शिरकत की। आरएसएस हालांकि भाजपा की चुनावरी मशीनरी का अभिन्न हिस्सा है, लेकिन इस बार 2014 की तुलना में कहानी कुछ अगल है।

आरएसएस ने 2014 में जहां भाजपा को ऐतिहासिक जीत दिलाने के लिए समानांतर अभियान चलाया था, वहीं इस बार ऐसा माना जाता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह खुद भी काफी समर्थ हैं।

आरएसएस पे 2014 में अत्यधिक सक्रियता दिखाई, क्योंकि ऐसा माना जाता था कि 1977 की तरह वह चुनाव निर्णायक होगा। 1977 में जनता दल गठबंधन ने पहली बार कांग्रेस को सत्ता से बेदखल किया था।

नई दिल्ली के राजनीतिक गलियारे में पहले से ही यह चर्चा है कि अगर भाजपा को कम सीटें आईं तो शीर्ष पद के लिए आरएसएस केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी का समर्थन कर सकता है।

इस बार बदले अफसाने के बावजूद भाजपा को देशभर में आरएसएस के विशाल नेटवर्क का लाभ मिल रहा है। यह मशीनरी फिर काम आएगी।

चुनाव अभियान में आरएसएस की गतिविधियों का आईएएनएस ने जायजा लिया कि संगठन किस प्रकार हर मतदाता से संपर्क करता है और ऐसे मसलों को उठाता है, जिनकी चुनाव में अहम भूमिका होगी।

संगठन :

बतौर सांगठनिक इकाई आरएसएस का देश को देखने का थोड़ा अलग नजरिया है। इसकी एक लचीली संरचना है, जो प्रांत या क्षेत्र और मंडल और नगर सहित पूरे देश के भौगोलिक क्षेत्र में व्याप्त है। आरएसएस ने देश का 11 क्षेत्रों में विभाजित कर रखा है।

दक्षिण : इसमें केरल और तमिलनाडु शामिल हैं।

दक्षिण मध्य : इसमें दक्षिण कर्नाटक, पश्चिमी आंध्रप्रदेश, पूर्वी आंध्रप्रदेश (तेलंगाना राज्य बनने के बाद पुनर्गठित) शामिल हैं।

पश्चिम : इसमें कोंकण, पश्चिमी महाराष्ट्र, देवगिरि, गुजरात और विदर्भ शामिल हैं।

मध्य : इसके अंतर्गत मालवा, मध्य भारत, महाकौशल और छत्तीसगढ़ आते हैं।

उत्तर पश्चिम : इसमें चितौड़, जयपुर और जोधपुर शामिल हैं।

उत्तर : यह आरएसएस की गतिविधियों का केंद्र है, क्योंकि इसमें दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर शामिल हैं।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश : उत्तराखंड, मेरठ और ब्रज इसमें शामिल हैं।

पूर्वी उत्तर प्रदेश : इसमें कानपुर, अवध, काशी और गोरखपुर शामिल हैं।

उत्तर पूर्व : इसमें उत्तरी बिहार, दक्षिणी बिहार और झारखंड आते हैं।

पूर्व : इसमें उत्कल, दक्षिणी बंगाल और उत्तर बंगाल शामिल हैं।

असम : इसमें उत्तर असम, अरुणाचल प्रदेश, दक्षिण असम और मणिपुर शामिल हैं।

आरएसएस के अग्रिम संगठन इस विशाल भौगोलिक संरचना में काम करते हैं।

आरएसएस के निर्णय लेने वाले दो निकाय हैं- अखिल भारतीय कार्यकारिणी और अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा।

(सूत्र : आरएसएस के बारे में जानें)

मसले :

सबरीमाला मामला : सर्वोच्च न्यायालय के फैसले में सभी संबद्ध इकाइयों और रिवाजों व पीठ की एकमात्र महिला सदस्य की अलग राय पर विचार नहीं किया गया। राज्य सरकार पर फैसले को किसी निर्धारित समय-सीमा में लागू करने की बाध्यता नहीं थी, लेकिन फैसले की बारीकी को समझे बगैर प्रदेश सरकार ने हिंदू समाज के प्रति राजनीतिक वैमनस्य और अनावश्यक जल्दबाजी दिखाते हुए गैर-हिंदू व अश्रद्धालु महिलाओं को मंदिर में जबरन प्रवेश की सुविधा मुहैया करवाई।

राष्ट्रीय सुरक्षा व पुलवामा हमला : राष्ट्र विरोधी तत्वों की मदद से बाहरी ताकतें हिंसा की घटनाओं को अंजाम दे रही हैं। सेना व प्रतिरक्षा बलों के शिविरों पर हमले, पाकिस्तानी सेना द्वारा सीमावर्ती इलाकों में घुसपैठ संबंधी हमले और हालिया पुलवामा आतंकी हमला काफी दुखद हैं। किसी को हमारी सहिष्णुता को हमारी कमजोरी के संकेत के रूप में नहीं लेना चाहिए।

राम-जन्मभूमि मामला : लंबे समय तक चले विवाद को खत्म करने के लिए न्यायिक प्रक्रिया तेज करने के बजाय सर्वोच्च न्यायालय ने चौंकाने वाला रुख अपनाया। यह कि सर्वोच्च न्यायालय के पास हिंदू समाज की गहरी आस्था से जुड़े इस संवदेनशील विषय के लिए कोई प्राथमिकता नहीं हो। हम देख रहे हैं कि हिंदुओं की निरंतर उपेक्षा हो रही है। न्याय प्रणाली का पूरा सम्मान करते हुए हम कहना चाहेंगे कि विवाद का फैसला शीघ्र हो और भव्य मंदिर निर्माण की बाधाएं दूर हों।

(सूत्र : आठ मार्च को जारी आरएसएस की सालाना रिपोर्ट 2019)

आरएसएस के पदाधिकारी : आरएसएस इस बात पर बल देता है कि वह भाजपा को सिर्फ सुझाव देता है न कि निर्देश। लेकिन आरएसएस के सभी पदाधिकारी सरकार की आंख, कान और दिमाग हैं, क्योंकि वे जनसमूह के बीच काम करते हैं।

चुनाव क्षेत्र से उम्मीदवारों के चयन पर फीडबैक देने से लेकर दरवाजे-दरवाजे पहुंचकर आरएसएस के कार्यकर्ता भाजपा के पक्ष में समर्थन जुटाने में अहम भूमिका निभाते हैं।

आरएसएस के प्रमुख पदाधिकारी लोकसभा चुनाव के दौरान पर्दे के पीछे महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। ये पदाधिकारी हैं :

सुरेश भैयाजी जोशी : आरएसएस में दूसरे स्थान पर रहने वाले भैयाजी जोशी आरएसएस और भाजपा के बीच समन्वय स्थापित करते हैं। आरएसएस के संचाल व कार्यकारी प्रमुख के रूप में जोशी नियमित शाखाओं की संख्या बढ़ाने में सक्रिय रहे हैं। उन्होंने हाल ही में कहा कि समाज सिर्फ संविधान से ही नहीं चलता है, बल्कि परंपराओं और विश्वास के लिए भी समाज में जगह होती है।

दत्तात्रेय होसबोले : आरएसएस के सह-सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले संगठनात्मक मसलों पर जोशी की मदद करते रहे हैं और उन्होंने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में अहम भूमिका निभाई थी। वह खुद लखनऊ में भाजपा नेताओं के साथ काम कर रहे थे।

डॉ. कृष्ण गोपाल : आरएसएस के सह-सरकार्यवाह कृष्ण गोपाल लोकसभा चुनाव 2019 के लिए संघ और भाजपा के बीच के मसलों को संभालते हैं। उनकी वही भूमिका है, जो 2014 के लोकसभा चुनाव में सुरेश सोनी की थी।

वी. भागैया : सह-सरकार्यवाह वी. भागैया ओबीसी चेहरा हैं। वह दक्षिण के प्रांत आंध्रप्रदेश, कर्नाटक और तेलंगाना में संघ के विस्तार का प्रबंधन कर रहे हैं।

अरुण कुमार : वह आरएसएस के संचार विभाग के प्रमुख हैं। अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख अरुण कुमार राष्ट्रीय स्तर के मीडिया से बातचीत करते हैं और आरएसएस के विचार रखते हैं। उन्होंने जम्मू-कश्मीर में कई साल तक काम किया है।